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________________ 244 भीमसेन चरित्र और धन-सम्पदा को भला कौन भोगेगा? संसार में प्रवेश किये हमें काफी समय व्यतीत हो गया। जो जीवन आनन्द और उमंग से सजाया बसाया किंतु आज उसके उत्तराधिकारी का कहीं नामोनिशान नहीं है। हमारा प्रशस्त राजमहल उसके वारिस से सूना पड़ा है। जब कभी मैं इन विचारों में खो जाती हूँ सहसा मेरा मन उदास हो जाता है, और मति मंद हो, जी भीतर ही भीतर घुटने लगता है।" रानी के कथन से उसका चिंतित होना स्वाभाविक था। परन्तु वह क्या कर सकता था? विधि के आगे किसी की चली है, जो उसकी चलती? अतः वह विवश था। फिर भी उसने रानी को आश्वासन दिया, किंतु स्वयं आश्वस्त नहीं हो सका। राजा को यों उदास देख, मंत्री ने उसकी उदासी का कारण जानना चाहा। प्रत्युत्तर में राजा ने संतानोत्पत्ति न होने का कारण बताया। तब मंत्री ने उसे धैर्य धारण करने की सलाह देते हुए कहा : “राजन! इसमें भला चिंतित होने की क्या बात है? यह सब दैवाधीन है। यहाँ हमारी इच्छानुसार कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इसके लिए प्राणी को पुण्योपार्जन करना पडता है। पुण्य के बल पर धन-संपदा प्राप्त होती है। पुण्य के कारण ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। पुण्य की प्रबलता हो तो सुन्दर संतति प्राप्त होती है और पुण्यवश ही सुख और साहिबी मिलती है। __ अतः हे प्रभु! आप विशिष्ट प्रकार की धर्माराधना कीजिए। धर्म के प्रभाव से आपकी समस्त चिंताएँ अवश्य दूर हो जाएंगी।" ___ मंत्री की रोचक एवम् योग्य सलाह सुनकर राजा सिंहगुप्त और रानी वेगवती विशिष्ट प्रकार की धर्माराधना करने में मग्न हो गये। अपना राजकोष उसने सबके लिए खुला छोड दिया। दोनों मुक्त हाथ से दान देने लगे। दीन-हीनों की सेवा-सुश्रूषा करने लगे। साधु-संतों की यथेष्ट आवाभगत करने में सदैव तत्पर रहते थे। निर्बल और निर्धन समाज के सुख-दुःख में हाथ बँटाने लगे। उनके अन्न व वस्त्र की पूर्ति करने लगे। रोगी और अनाथ-असहायों के लिए औषधियों की व्यवस्था करने लगे। प्रभु-पूजा, प्रतिक्रमण, सामायिक, पर्वतिथि पर पौषध, उपवास आदि धार्मिक अनुष्ठानों में सक्रिय भाग लेने लगे। इस तरह समय-चक्र अबाध गति से चलता रहा। एक बार राजा और मंत्री अश्वारोहण कर नगर से दूर-सुदूर उपवन में क्रीडा करने निकल पडे। वनश्री के सौन्दर्य का पान करते हुए दोनों बहुत दूर निकल गये। विहार की धुन में समय का भान ही न रहा। दोनों मुग्ध हो, हरियाली से आच्छादित प्रदेश का भ्रमण करने में खो गये। घूमते-घूमते दोनों एक विशाल बावडी के पास पहुँच गये। कुछ समय रूक कर दोनों ने विश्राम किया, बावडी के शीतल जल का पान किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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