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________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 237 भौतिक दुःखों से भयभीत ऐसे धीर-गंभीर स्वभाव के धारक और श्रुत-ज्ञान के अनन्य पारंगत ऋषि-महर्षिगण सुखपूर्वक विविध प्रकार के बाह्य आभ्यन्तर तपों की आराधना करते हैं। बाह्य-तप के छह प्रकार होते हैं। इनसे उत्कृष्ट प्रकार की देह-शुचि होती है और आंतर-तप की आराधना से आत्मा शुद्ध-विशुद्ध होती है। इस तप के भी छह प्रकार बताये हैं। ___अतः हे सज्जनों। ऐसी निर्जरा भावना का अवलम्बन कर तुम्हें अपनी काया तथा आत्मा को विशुद्ध... शुचिर्मय करना चाहिए। जिस के कारण तीनों लोक में रहे जीवों की विशुद्धि होती है और होता है लोकोद्धार। ऐसे परम पवित्र चिरंतन धर्म रूपी कल्पवृक्ष को हमारा शतशः नमस्कार। श्री जिनेश्वर भगवंत ने जिस धर्म को प्ररूपित किया है। उसका विशुद्ध-भाव से अंश मात्र भी सेवन किया जाए तो अक्षय सुखों की प्राप्ति होती है। ज्ञानी शास्त्रकारों ने ऐसे शुभ लक्षणयुक्त धर्म के दस प्रकार विशद दिये हैं : क्षमा धर्म तप धर्म मार्दव धर्म संयम धर्म आर्जव धर्म त्याग धर्म शौच धर्म अकिंचन धर्म सत्य धर्म ब्रह्मचर्य धर्म हिंसा, असत्य, राग-द्वेष और चौर्यादि विषयों में आसक्त मिथ्यात्वी आत्मा उक्त आत्म-कल्याणकारी धर्म को स्वप्न में भी प्राप्त नहीं कर सकते। चिंतामणि रत्न, दिव्यनिधि, सिद्धि, कल्पवृक्ष और प्रसन्न कामधेनु यह सब धर्म रूपी राजराजेश्वर के अनन्य सेवक हैं। अतः धर्माराधना करने पर ये सेवक आराधक आत्मा को इच्छित धन-संपदा और वैभव रूपी अक्षय लक्ष्मी प्रदान करते हैं। त्रिलोक में धर्म के समान अन्य कोई आलम्बन नहीं है, जो मुक्ति का निमित्त हो। सर्व प्रकार के अभ्युदय, आनन्द एवम् उल्लास का दाता, परम हितकारी, पूज्यों में श्रेष्ठ ठीक वैसे ही शिव-सुख का दातार एक मात्र धर्म ही है। इस जगत में उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। अपनी आत्मा के लिए मन, वचन, काया से जो कार्य अनिष्ठ है, उसका उपयोग स्वप्न में भी अन्यजनों के लिए नहीं करते। यही धर्म का मूल और प्रधान चिन्ह है। धर्म के ही प्रभाव से मानव देव, देवेन्द्र, धरणेन्द्र एवम् नागेन्द्र सदृश श्रेष्ठ सुखों को प्राप्त करता है। अरे, धर्म में इतनी अभूतपूर्व शक्ति और बल है कि, वह क्षणार्ध में ही अमरावती के समस्त सुख और वैभव को प्रदान करता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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