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________________ 236 भीमसेन चरित्र गोते लगाने के लिए निरंतर विवश करनेवाले ऐसे नानाविध अशुभ कर्मों का बंधन करता है। फलस्वरूप जो आत्मा संसार के समस्त व्यापारों को तृण समान मान कर सदैव श्रुत ज्ञान प्राप्ति में आसक्त होता है, वह प्रायः शुभ कर्मोपार्जन करता है। वह सतत यही चिंतन करता रहता है कि, 'देवाधिदेव वीतराग परमात्मा के वचन सत्य एवम् कल्याणप्रद है और असत्य वचन निंदनीय ठीक वैसे ही जीव को अन्याय-अनीति के मार्ग पर ले जाने वाले सर्वथा पापमय है। अतः वह अपनी काया के समस्त व्यापारों को नियंत्रित रखता है। कायिक-ममत्व का त्याग करता है, और शुभ योग का अनुशरण कर नीति-मार्ग का अवलम्बन करते हुए संयम-जीवन का आचरण करता है। ऐसी आत्मा सदैव शुभ कर्म-बंधन करती है। जबकि अन्य आत्माएँ, जो निरंतर पाप द्योतक प्रवृत्तियों में रत रहती है। अपनी काया को पापकर्म के गहरे गर्त में डूबो रखती है। ऐसी आत्मा प्रायः अशुभ कर्म-बंधन करती है। हे भव्यजनो! इस तरह की आम्रव भावना का नित्यप्रति स्मरण करते रहने से आत्मा शाश्वत सुख की प्राप्ति करती है। समस्त आम्रवो का सर्व प्रकार से प्रतिकार... निरोध अर्थात् संवर (संवरण)। इसके दो भेद हैं : द्रव्य संवर और भाव-संवर। तपस्वीजन ध्यान लगाकर पाप का अवरोध करते हैं। वह सर्व मत में प्रधान एवम् प्रथम द्रव्य संवर माना गया है और संसार के समस्त भय का संहारक ठीक वैसे ही संसार के मूल कारण स्वरूप क्रिया की विरति, इसे भाव-संवर माना गया है। इस तरह की सर्वोत्तम संवर-भावना के कारण आत्मा असंख्य पाप कर्मों से बच जाती है। भव्यात्माओ! जिस के कारण अन्य जन्म के बीज स्वरूप कर्मों का नाश होता है ज्ञानीजनों ने उसको 'निर्जरा' की संज्ञा दी है। उसके दो भेद हैं। सकाम निर्जरा और अकाम निर्जरा। व्रतधारी आत्माएँ सकाम निर्जरा से युक्त होते हैं, जबकि ब्रह्माण्ड में रहे तिर्यंच मात्र अकाम निर्जरा के धारक होते हैं। __ वृक्ष पर रहे फल दो प्रकार से पकते हैं : एक फल अपने आप ही प्राकृतिक ढंग से वृक्ष पर ही पकता है, जबकि दूसरा फल बाह्योपचार से कृत्रिम ढंग से पकाया जाता है। ठीक उसी तरह आत्मा से जुड़े कर्म यथायोग्य स्वयं ही उदित होते हैं और उपभोगित होते हैं, जिनका तप, अनुष्ठान, ध्यान-धारणा और साधना के माध्यम से क्षय होता है... नाश होता हैं। जिस तरह प्रयलों की पराकाष्टा कर सोने में मिली मिट्टी आदि की अशुचि अग्नि से दूर होती है, उसी तरह आत्मा से जुड़े कर्मों की अशुद्धि तपाग्नि से दूर होती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. = Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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