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________________ 222 भीमसेन चरित्र का एक स्थान पर ढेर लगा दिया। उसमें सरसों के बीज मिला दिये तथा एक वृद्ध स्त्री से उन्हें अलग करने के लिये कहा। क्या यह संभव है? कदाचित् संभव हो सकता है। परन्तु एक बार मानव जीवन से पदभ्रष्ट हो वह किसी भी काल में उसे पुनः प्राप्त नहीं कर सकता है। एक राजाने अपने पुत्र से कहा : 'हे पुत्र! यदि तुम मुझे मेरी शर्त के अनुसार जीत सको तो मैं तुम्हारा राज्याभिषेक करने के लिए तैयार हूँ। शर्त इस प्रकार है : हमारी राज सभा में कुल मिलाकर एक हजार आठ स्तम्भ हैं और प्रत्येक स्तम्भ में एक सौ आठ कोण है। जुए में क्रम से एक-एक कोण को जीतते हुये यदि 108 कोण को जीतोगे तब एक स्तम्भ जीता माना जायेगा। इस प्रकार जीतते हुए एक बार भी हार गये तो तुम्हें पुनः आरम्भ से खेलना पडेगा। इस प्रकार तुम अगर राजसभा में रहे समस्त 1008 स्तम्भ जीत लोगे तो तुम्हें मैं राज्य सौंप दूंगा। संभव है कि देव की सहायता से राजकुमार राजा की सभी शर्तों को पूरा करता हुआ विजय प्राप्त कर भी ले, परन्तु सुकृत्य रहित हारा हुआ मानव भव पुनः प्राप्त करना पूर्वतया दुर्घट है। जुए में हारने पर पुनः दाव लगाया जा सकता है। परन्तु मानव जीवन के सम्बन्ध में ऐसा कदापि नहीं होता। उसका आरम्भ बार बार नहीं कर सकते। उसको तो एक बार में ही हारा या जीता जा सकता है। बार बार उसकी आवृत्ति को स्थान नहीं है। किसी एक जौहरी के पत्रोंने देश विदेश से आये यात्रियों के साथ बहमूल्य रनों का सौदा किया। उस समय पिता देशाटन पर गये थे। लौटने पर उन्होंने अपने पुत्रों से रत्नों के विषय में पूछा : 'रल कहाँ गये?' अच्छे दामों पर हमने रत्नों को विदेशी यात्रियों के हाथ बेच दिया। प्रत्युत्तर में पुत्रों ने शांति से कहा। ये विदेशी भी किसी एक देश के नहीं थे। वरन भिन्न भिन्न देशों से आये थे। पुत्रों को उनका पर्याप्त परिचय नहीं था। ऐसी स्थिति में यदि पिता अपने पुत्रों से उन रत्नों को पुनः प्राप्त करने का कहे तो क्या पुत्र उन रत्नों को प्राप्त कर सकते हैं? ठीक इसी प्रकार मानव भव भी एक बार गया तो गया, पुनः मिलना असंभव है। एक बार महाराज मूलदेव व एक साधु के शिष्य को एक ही रात्रि में एक समान ही स्वप्न आया। स्वप्न के फलस्वरूप मूलदेव को राज्य की प्राप्ती हुई। इधर साधु के शिष्य ने अपने गुरू से स्वप्न का फल पूछा, तो उन्होंने कहा : "आज तुम्हें भिक्षा में घी व स्वादिष्ट मालपुएँ मिलेंगे।" स्वप्न के पश्चात् जो विधि-विधान करना चाहिये, वह शिष्य ने नहीं किया। फलतः उत्तम फल की प्राप्ति से वह पूर्णतया वंचित रहा। इसी तरह मानव जन्म प्राप्त करके भी जो सुकृत कर्म नहीं करते। ऐसे व्यक्ति इस भव के फल से वंचित रह जाते है और वें सदैव के लिए हाथ मलते रह जाना पडता है। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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