________________ गौरवमयी गुरुवाणी 221 कई सुइयाँ एक साथ भोंक दी जाय और उससे सारे तन-बदन में जो असह्य पीडा होती है... रोम रोम में जो दाह... जलन होती है... अंग-प्रत्यंग में जो भीषण यातना होती है... कष्ट होता है... इससे कई गुणा अधिक पीडा गर्भ में पल रहे जीव को होती है। साथ ही प्रसव समय जीव को अकथनीय पीडा सहनी पडती है। अनंत दुःख की अनुभूति इस जीव को उस समय होती है, उसका वर्णन करने में शब्द भी असमर्थ सिद्ध होते है। हे भव्य जीवों! गर्भावास की ऐसी असह्य पीडा वं दुःखों को सुनकर तुम सब ऐसा पुरुषार्थ करो कि भव-भवान्तरों में कभी ऐसा दुःख सहन करने का प्रसंग न आवें। इन समस्त दुःखों से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय धर्म है। जो जीव शुभ व शुद्ध हृदय से उत्कट आराधना करते हैं। उन्हें सदा-सर्वदा के लिये. जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। शेष इस चौदह राज लोक में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जहाँ कर्म-बंधन से बंधे जीव ने जन्म धारण नहीं किया हो! जन्म-मरण की इस शृंखला में जीव न जाने कितनी बार गुंथा गया। भावागमन का सिलसिला अनवरत चलता ही रहता है। अनंत भवों के चक्र में उलझे रहने के उपरांत जीव को मानव जन्म मिलता है। अतः आप ही सोचिए, मानव जन्म कितना मूल्यवान है? व्यंतर और तिर्यञ्च भव तो बार बार मिलता है। परन्तु मानव भव तो कभी-कभार ही मिलता है। तभी शास्त्रज्ञाताओं ने मानव भव को दस दृष्टांतो के माध्यम से दुर्लभ (1) ब्रह्म का भोजन (2) पाशक (3) धान्य की ढेरी (4) जुआ (5) मणी (6) चन्द्र-पान का स्वप्न (7) चक्र (8) कछुआ (9) युग (10) परमाणु उपरोक्त दस दृष्टांत मानव जन्म की दुर्लभता समझाने के लिये है, जिन्हें आत्मसात कर जीव कृतार्थ करें। एक बार चक्रवर्ती राजन् ने एक ब्राह्मण को प्रसन्न होकर वरदान दिया कि, हे भूदेव! इस भरत क्षेत्र में जितने घर हैं, प्रत्येक घर से तुम्हें प्रतिदिन भोजन की प्राप्ति होगी। भरत क्षेत्र में घर कितने? ब्राह्मण की आयु कितनी? आयु के दिन कितने? और उक्त दिनों के जून... वक्त कितने? __मान लो जिस घर से ब्राह्मण को एक समय का भोजन मिला है। क्या पुनः उसकी बारी आयेगी भी? क्या यह संभव है? इसी प्रकार मानव जीवन है। एक बार मिला सो मिला। बारम्बार मिलना संभव नहीं। जए में चाणक्य ने सभी श्रीमंतो को पराजित कर चन्द्रगुप्त का खजाना भर दिया। इन धनाढ्य आसामियों में से कोई चाणक्य को हरा कर अपनी हारी हुई धन-सम्पदा को प्राप्त कर सकता है। यह कदाचित संभव भी है। परन्तु जो जीव मानव जन्म प्राप्त करके भी उसका सदुपयोग नहीं करता, वह मानव जन्म को व्यर्थ में ही खो बैठता है। वह पुनः मानव जन्म प्राप्त नहीं कर सकता। एक श्रीमंत ने करोडों मन अनाज Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.