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________________ 208 भीमसेन चरित्र क्षितिप्रतिष्ठित नगर में हैं। परन्तु उसके पश्चात् कोई समाचार प्राप्त नहीं हुए। वे कुशल तो होंगे? भाभी व बालक भी स्वस्थ होंगे न? उफ् वे अपने मन में मेरे सम्बन्ध में क्या सोचते होगें? मुझ पर क्रोधित नहीं होगे? मुझे भला बुरा तो नहीं कहते होंगे? नहीं... नहीं... मेरे भ्राता ऐसी नीच प्रकृति के नहीं है वे मेरा तिरस्कार नहीं कर सकते। और भाभी तो विशालहदय रखती है... उदारमना है। वह मुझे शाप दे ही नहीं सकती। जो हो सो। उनसे भेंट होते ही मैं उनके चरणों में लिपट जाऊँगां और अश्रुजल से उनके चरण धो कर अपने आपको बडभागी मानूंगा। साथ ही स्वदुष्कर्म के लिए गिडगिडा कर उनसे क्षमा याचना करूंगा। हरिषेण जैसे-जैसे अपने ज्येष्ठ भ्राता भीमसेन के बारे में विचार करता जाता था, वैसे वैसे उसका हृदय अधिकाधिक संवेदनशील होने लगा। सहसा आँखों की कोर गीली हो गई और बंधु प्रेम उमड घुमड कर आँसू का रूप धारण कर टपकने लगा, उसी समय द्वारपाल ने प्रवेश कर बधाई दी “राजगृही के युवराज की जय हो।" क्यो क्या समाचार है? मेरे हृदय में मात्र एक ही शुभ विचार है। और यदि ज्येष्ठ भ्राता भीमसेन का कोई समाचार हो तो शीघ्र कहो। और यदि कोई अन्य समाचार हो तो मंत्रियों से कहो। ज्येष्ठ बंधु के समाचार के अतिरिक्त मैं कोई अन्य समाचार भी नहीं सुनाना चाहता। हरिषेण अपने भ्राता की स्मृति में इस कदर खो गया था कि हर क्षण और हर पल वह उनके विचारों में मग्न रहता था। 'राजन्! आप शीघ्र ही तैयार रहे। ज्येष्ठ भ्राता भीमसेन राजगृही की और ही आ रहे है।" "क्या कहा? भ्राता भीमसेन यहाँ आ रहे है? कहाँ है? कहां है? "युवराजश्री यहाँ से कोई बारह योजन दूर एक घना जंगल है। उसको पार कर प्रचंड सेना के साथ इधर आ रहे है।" मंत्रीराजा अश्वपाल को कहो शीघ्र ही मेरा अश्व तैयार करें। राज सभा तुरन्त विसर्जित कर दो। और यदि आप आना चाहे तो मेरे साथ चले। मैं इसी क्षण ज्येष्ठ भ्राता की सेवा में उपस्थित होना चाहता हूँ। लो संदेशवाहक। यह रलहार। तुम्हारी बधाई की उपहार। और हाँ, समस्त नगर में डिंडिम की घोष करवा दो कि राजगृही नरेश भीमसेन पधार रहे है। नगरजन उनके स्वागत की तैयारी करें। नगर की सफाई कर बन्दनवार और तोरणद्वार से उसे षोडशी नारी की भाँति अविलम्ब सजा दो। सडक पर सुगन्धित जल का छिडकाव करो। घर-आँगन में रंगोली निकलवाओ। राजपथ और चौक-चबुतरों को पताकाओं से सजाओ। साथ ही नगर-जनों को सूचित कर दो कि महाराज भीमसेन का वे ऐसा भव्य स्वागत करें कि वह स्वयं भूल ही जाये कि वे राजगृही में प्रवेश कर रहे हैं। "हरिषेण उत्साह पूर्वक एक के बाद एक आदेश देने लगे। जरूरी आदेश एवं सुचनाये प्रदान कर अविलम्ब अपने महल की और बढ़ गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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