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________________ राम-लखन की जोडी 207 एक लम्बी अवधि के बाद अपने लघु भ्राता से भेंट होगी। यह विचार आते ही भीमसेन का हृदय आनन्दानुभव कर रहा था। इसी उमंग एवम् उत्साह, प्रेम और ममता के भावों को हृदय में संजोये राजगृही की और बढ रहे थे। राम-लखन की जोडी राजगृही के दरबार में हरिषेण विचार शून्य आसनस्थ था। राजसभा में मंत्रीगण, राजकर्मचारी, गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। शासन सम्बन्धि समस्याएँ एक के पश्चात् एक निपटाने का क्रम चल रहा था। राज्य का सम्पूर्ण कार्य भार मंत्रीगणों ने अपने कंधों पर उठा रखा था। हरिषेण राजकार्य से लगभग निर्लिप्त हो गया था। प्रसंगोपात ही वह राज-काज में सम्मिलित होता था। राज्य प्रशासन के प्रति एक प्रकार से उसके मन में उरूचि पैदा हो गई थी। यद्यपि उसकी प्रतिभा में अब भी कोई कमी नहीं थी। वह विलक्षण बुद्धि का धनी था। किंतु प्राप्त परिस्थिति में उसके आचार विचार में आमूल परिवर्तन आ गया था। उसकी प्रतिभा में से आज सत्ता की दबदबा लगभग कम हो गयी थी। उसके स्थान पर भातृस्नेह का सौन्दर्य दैदिप्यमान हो रहा था। परन्तु स्वयं की अपक्व बुद्धि के कारण ज्येष्ठ भ्राता को राजगृही का परित्याग कर रातों रात राजगृही छोडना पड़ा। उसके स्मरण मात्र से वह व्यथित हो उठता था। उसका हृदय असह्य वेदना के मारे सिहर उठता था। पश्चाताप की अग्नि में उसका हृदय जल रहा था। एक समय था जब वह पूर्ण रूप से अन्ध बन गया था। सत्ता के मोहने उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी थी। परन्तु आज उसकी आँखों पर से सदा के लिए मोह का पर्दा हट गया था। राजसिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद राज्य की बागडोर हस्तगत करने की बलवती इच्छा आज पूर्णतया समाप्त हो गई थी, बल्कि आज तो वह महज कर्तव्य का भार वहन कर रहा था। वह नियमित रूप से राजसभा में उपस्थित रहता था। परन्तु राजसिंहासन पर आरूढ़ नहीं होता था। अपने श्रद्धेय पिताश्री एवम् ज्येष्ठ बंधु ने युवराज पद के जिस सिंहासन पर उसे बिढाया था। वह उसी सिंहासन पर आज भी बैठता था। राज्य सभा में प्रवेश करने के उपरान्त सर्व प्रथम वह भीमसेन के सिंहासन को श्रद्धाभाव से प्रणाम करता। कुछ क्षणों तक मौन रहकर मन ही मन अपने अपराध की क्षमा याचना करता और तब अवसन्न सिंहासन पर आरूढ होता। आज प्रातःकाल से रह-रह करके उसकी दाहिनी आँख फडक रही थी। यह किसी शुभ समाचार के संकेत की द्योतक थी। अवश्य ही आज किसी प्रियजन से भेंट होगी या उनका समाचार प्राप्त होगा। सभा का कार्य पूर्ववत् चल रहा था। परन्तु हरिषेण विचार मग्न था। क्या आज मुझे अपने ज्येष्ठ भ्राता के शुभ समाचार प्राप्त होंगे? क्या स्वयं ही उनके दर्शन होंगे? तब तो कितना अच्छा होगा? कुछ समय पूर्व ही संदेशवाहक समाचार लाया था कि वे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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