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________________ 206 - भीमसेन चरित्र है राजन्! यह मेरा महान अपराध है। मुझे क्षमादान दें। सुभद्र ने सहज भाव से अपना सम्पूर्ण वृतान्त कह सुनाया। ' "सुभद्र तुम्हारी सत्यप्रियता और मेरे प्रति तुम्हारे मन में रहे अनन्य प्रेम भाव अनुभव कर मुझे अपार आनन्द हुआ। साथ ही दुःख का भार भी उसी अनुमान में बढ गया कि तुम अत्यन्त उपयोगी व्यक्ति हो परन्तु भरण पोषण के लिये तुमने जो व्यवसाय चुना है वह बहुत निकृष्ट और अधम व्यक्ति के करने लायक है। जीविकोपार्जन के लिये तुम्हारे द्वारा ऐसा व्यवसाय करना शोभा नहीं देता। तुम्हे यह तो भली भांति ज्ञात ही है, कि धन तो मनुष्य का महा प्राण है, उसके चले जाने से न तो प्राणी जी सकता है, नाही मर सकता है। बल्कि उसके अभाव में वह घुट-घुट कर मरता है। मानव का तुम मात्र धन ही नहीं लूटते किन्तु उसका सुख-चैन छिन कर उन्हें मृत्यु की ओर धकेलते हो। शास्त्रकारों ने भी चोरी को निषिद्ध माना है... महा पाप माना है। चोरी जैसे पाप कर्म से यह भव तो बिगडता ही है साथ साथ सुभद्र! भवान्तर भी कलुषित हो जाते हैं। सुभद्र! तुम चोरी करना छोड दो। अच्छा व सात्विक जीवन यापन करो। तुम्हें तुम्हारे परिश्रम से जो कुछ भी प्राप्त हो, उसी में सन्तोष धारण करो और निरपराध निष्कंलक जीवन जीना सीखो। मेरे प्रति तुम्हारे मन में सच्चा भक्तिभाव है। तुम मुझे स्वामी के रूप में स्वीकार करते हो तो मुझे वचन दो कि तुम चोरी का कार्य छोडकर सच्चे मानव बनोगे। असत्य की संगत छोडकर सत्य की राह पकडोगे।" “राजन्! आपकी आज्ञा शिरोधार्य, जैसा आप आदेश देगें वैसा ही करूँगा। आपकी आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं होगा। प्राणों का उत्सर्ग करके भी आज्ञा का पालन करूँगा।" सुभद्र ने पश्चाताप करते हुए विनम्र भावसे कहा “तो चलो मेरे साथ। राजगृही में तुम्हे अपनी योग्यतानुसार अवश्य ही काम मिल जायेगा।" भीमसेनने सुभद्र को अपने साथ ले लिया। सुभद्र ने भीमसेन के चरण स्पर्श करते हुए गंभीर स्वर में कहाः 'मैं आपके सम्मुख प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं चोरी जैसा कुकर्म नहीं करूँगा तथा ना ही किसी से ऐसा कार्य करवाऊंगा।" शाबास!" भीमसेन ने स्नेह से सुभद्रका कंधा थपथपाया और राजगृही आने का निमंत्रण दिया। सुभद्र आज्ञा का पालन करते हुए भीमसेन की सेना में समिलित हो गया। प्रातः सेना ने पडाव उठाया और आगे कूच किया। अब मंजिल अत्यन्त समीप थी। दो दिन के उपरांत ही वे राजगृही पहुँचने वाले थे। सब के उत्साह का पारावार नहीं था। अलबत, युद्ध होगा या नहीं की जानकारी किसी को नहीं थी। फिर भी यदि युद्ध होता है तो न्याय के लिये युद्ध करने की सबकी तैयारी थी। इसी भावना के साथ सब आगे बढ रहे थे। किंतु भीमसेन सर्व दृष्टि से तटस्थ था। उसे पूर्ण विश्वास था कि युद्ध करने की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। अपने ही प्रियजनों व स्वजनों के विरोध में शस्त्र उठाने का अवसर ही नहीं आयेगा। वे तो स्वयं ही आकर गले मिलेंगे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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