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________________ 209 महल में जाकर हरिषेण ने राजसी पोशाक का परित्याग कर सामान्य नागरिक के साथ वह अश्व पर आरूढ हो गया। अश्व अपने मालिक की बेसब्री और उत्साह को पहले ही भाँप गया था। अतः वह पूरी शक्ति के साथ सरपट भागने लगा। हरिषेण भीमसेन के निकट पहुँचे उससे पूर्व ही मंत्रीगण नगर के धनाढ्य व्यक्ति सेठ-साहुकार और सेनानायक पहुँच चुके थे। भीमसेन की सेवा में उपस्थित हो, सभी ने अपने-अपने सामर्थ्यानुसार उपहार भेंट किये। परस्पर कशल क्षेम पूछ कर राज दरबारियों ने विगत का सारा वृतान्त कह सुनाया। उनके राजगृही परित्याग के अनन्तर हरिषेण किस भाँति चेतना शून्य हो गये थे। राजकाल से उनका चित्त कैसे उब गया। मन सदैव उदास रहने लगा। सुरसुन्दरी व विमला को उसने किस प्रकार महल से निकाल दिया। आज कल राजगृही की क्या स्थिति है? राजगृही वासी किस तरह अपने आप को असुरक्षित और असहाय अनुभव करते है, आदि कई बातों से उन्होंने महाराज, भीमसेन को अवगत किया। अपने अनुज बंधु की ऐसी दयनीय स्थिति का विवरण सुन, अनायास ही भीमसेन की आँखों में आँसू आ गये? सुशीला की आँखें भी नर्म हो गई। देवसेन व केतुसेन अपने काका की यह दुरावस्था अनुभव कर व्यथित हो उठे। “वे अभी आते ही होगें" अपनी बात पूरी करते हुए मंत्री वर्गने कहा। भीमसेन ने तुरन्त सेना को रूकने का आदेश दिया और एक घने वृक्ष के नीचे पडाव डाल कर वे हरिषेण की प्रतीक्षा करने लगे। तभी अश्व को वायु वेग से दौडाता हुआ हरिषेण आ पहुँचा। उसने सैनिकों को सम्बोधित कर अविलम्ब पूछा “यहाँ राजगृही नरेश भीमसेन कहाँ है? “यहाँ से पीछे उस ओर बढे चलिए। कुछ दूरी पर एक आम्रवृक्ष के नीचे वे विश्राम कर रहे है। हरिषेण ने अश्व को ऐडी लगाई और अश्व हवा से बात करने लगा। हरिषेण ने घोडे पर से ही आवाज लगाई "भैया-भाभी हरिषेण की आवाज सुनते ही शीघ्र ही भीमसेन खडा हो गया और प्रत्युत्तर में बोल पडा... हरि... षे.. ण, हरि... षे.... ण। पर्याप्त समय तक आवाजों का आदान-प्रदान होता रहा। धीरे धीरे दूरी कम होती गई और आवाज निकट और निकट आती गयी। भीमसेन पर दृष्टि पडते ही हरिषेण अश्व पर से तुरन्त कूद पडा और दौडता हुआ भीमसेन की ओर बढा। भीमसेन ने आगे बढकर उसको आलिंगनबद्ध कर लिया। दोनों का अभूतपूर्व स्नेह-मिलन को उपस्थित जन समुदाय और सैनिक गण विस्फारित नयन देखते ही रह गये। ___बंधु द्वय का यह अपूर्व मिलन था। दोनों आपस में गले मिल कर परस्पर स्नेह प्रदर्शन कर रहे थे। भीमसेन अभिनव प्यार से हरिषेण को उत्संग में ले, उसके मस्तक पर हाथ फेरने लगे। उसकी पीठ को प्यार से थप-थपाने लगे व उसके भाल प्रदेश पर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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