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________________ देव का पराभव 195 फल स्वरूप भीमसेन की आँखे खुल गयी। उसके सम्मुख खडी साक्षात् रंभा उसे मौन निमंत्रण दे रही थी। उसके हाथ में सूरा पात्र था, जिसे देखकर भीमसेन ने सहज होकर पूछा “आप कौन है?" "प्रभु! आपकी जन्म जन्मान्तर की पुजारिन हूँ। "मृदु स्वर चहक उठा। मृगनयनी ने एक मादक कटाक्ष किया। “पूजा तो वीतराग प्रभु की करो। मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूँ।" मेरे लिये तो आप स्वयं ही वीतराग है। आइए, उठिए! और मेरा अर्घ्य स्वीकार कीजिए।" अपने अंगोपांग को एक हलका झटका देते हुए अप्सरा ने पुनः कहा। भीमसेन ने मौन धारण कर लिया। यह स्त्री उसे वाचाल लगी। उसकी अपेक्षा कर वह उदासीन भाव से बैठ गया। वह उससे अधिक चर्चा करना नहीं चाहता था। अपसरा ने भीमसेन को आकर्षित करने के लिये झांझन का झंकार किया। अपनी श्यामल घनी केश सशि को अनोखे ढंग से उछाला। कमनीय देहलता के अंग प्रत्यंग विविध भाव भंगिमा के साथ नृत्य करने लगे। यौवन का कामोत्तेजक नृत्य अपनी सभी सीमाओं के तटबन्ध को तोडने पर उतारू था। गीत-संगीत और मन भावन नृत्य चल रहा था। अंतरिक्ष से मादकता की वृष्टि हो रही थी और भाव - भंगिमा के विविध कटाक्षों में उत्तरोत्तर जुआर आ रहा था। यौवन था। एकांत था। तन और मन को सराबोर कर दे, ऐसा सुरम्य वातावरण था और भोगोपभोग एवं विलास - वैभव का मूक निमंत्रण। भीमसेन उदास पाषाणवत् शांत बैठा था, और सम्मुख अप्सरा अविरत नृत्य कर रही थी। विकार और विह्वलता कण-कण में व्याप्त थी। भीमसेन इन सब से दूर यौवन काम-वासना के उल्कापात से मुक्त शांत - प्रशंसा था। वैसे यह युद्ध एक पक्षीय था। विपक्षी भीमसेन को पराजित करने की महत्वाकांक्षा मन में संजोये हुये था। परन्तु भीमसेन था कि युद्ध करने के लिये कतई तैयार नहीं था। उसे भास हो गया था कि यह सब महज एक इन्द्रजाल है, यह उसकी परीक्षा लेने के लिये ही फैलाया गया है। यदि कोई दुर्बल मन का होता तो घडी के छठवे भाग में ही अपने मार्ग से विचलित हुए बिना नहीं रहता। क्योंकि वातावरण ने तो पथ भ्रष्ट करने में कोई, कसर नहीं छोडी थी। परन्तु भीमसेन कोई साधारण पुरुष नहीं था। जहाँ वह शरीर से वीर था वहाँ संस्कार से भी महावीर... महायोद्धा था। उसकी आँखे अवश्य खुली थी। परन्तु विकार शून्य, वासना रहित थी। एक गहरी उदासी वहाँ छाई हुई थी, और वह एक तटस्थ प्रेक्षक बनकर अप्सरा का नृत्यावलोकन करने में मग्न था। अंततः अप्सरा नृत्य करते करते श्रमित हो, धरती पर गिर पड़ी। भीमसेन अपने स्थान से उठ कर उसके समीप गया। उसके अस्त व्यस्त शरीर पर शाल ओढाकर अपने शिबिर में लोट गया। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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