________________ / देव का पराभव 193 भीमसेन का तम्बू सबसे अलग एक सुरम्य स्थान पर लगाया गया। जहाँ से थोडी ही दूरी पर एक उपवन था। कोयल की कूक व पपैया की आवाज से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। जावित्री और मौलश्री के फूलों की भीगी सुगंध से उपवन महक रहा था। सृष्टि अपने पूर्ण यौवन पर थी। भीमसेन के लिये तो यह सृष्टि वास्तव में आत्मा के आनन्द की पोषक थी। उसकी मान्यता थी कि वासना व विकार तो मानव हृदय में होते हैं जबकि पदार्थ तो जड है। यदि मन ही उसमें लिप्त होकर वासना की कल्पना करे तभी उक्त पदार्थ काया को झनझना सकता है विकार ला सकता है। अन्यथा जड पदार्थ की भला क्या शक्ति कि वह चैतन्य को चंचल कर सके? भीमसेन की आंतर सृष्टि की भला उस देव को क्या जानकारी? उसकी दृष्टि से यह अवसर अत्युत्तम था। जिससे वह अपनी पूर्व निर्धारित योजना में सरलता से सफल हो सकता था। दुपहर का समय था। सूर्यताप से पृथ्वी तप्त थी। सबके मन में शीतल छाया में विश्राम करने की इच्छा जागृत हो, ऐसी कडी धूप बाहर तर रही थी। निकट ही एक नदी कल कल करती बह रही थी। उसके किनारे दूर - सुदूर तक कुंज-निकुंज फैले हुए थे। सैनिक गण यहाँ वहां विश्राम कर रहे थे। भीमसेन भी सैन्य - शिबिर से कुछ दूरी पर घने आम्रवृक्षों के झुरमुट की छाया में विश्राम कर रहा था। उसे विगत कई दिनों के उपरान्त ऐसी फुरसत एवं शांति मिली थी। यहां प्रवास की थकान अवश्य ही थी। परन्तुं उसका मुख म्लान नहीं था। अंग-प्रत्यंग से व्यग्रता झलक रही थी। वह मौन धारण कर आस-पास फैली हरियाली व सृष्टि - सौंदर्य निहारने में खो गया था। तभी सहसा उक्त देव ने अपना मायाजाल फैलाया। क्षणार्ध में ही वातावरण सुगन्धमय बन गया। मन मष्तिष्क कल्पनाश्व पर सवार हो मुक्त-मन से केलि - क्रीडा-करने लगे ऐसी सुखद सुरम्य हवा में तरंगित हो गया। शीतल व सुगन्धित प्रकृति ने भीमसेन का मन हर्षित कर दिया। झुलसती दुपहर में शीतल हवा के झोके मन को प्रफुल्लित कर गये। साथ ही ऐसे मादक वातावरण में कही से संगीत की स्वर लहरे गुंज उठी। संगीत धीरे धीरे मादक होता गया। वातावरण में प्रसारित उसकी तरंगें तन-मन को प्रभावित करने लगी। आनन्द लूटने के लिये कही से मोर व मोरनी आ गये। मोर ने नृत्य आरम्भ : किया। मोरनी को अपने समक्ष निहार वह आनन्दमग्न हो उठा। भीमसेन इधर जिस आम्रवृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था उसी वृक्ष की डाल पर कही से एक शुक व शुकी आ बैठे और हर्ष विभोर हो रति-क्रीडा में मग्न हो गये। यह सब देव का इन्द्रजाल था। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust