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________________ 192 भीमसेन चरित्र जन्मे हो। परन्तु सर्व प्रथम तुम मानव हो। अतः मानव धर्म सभी के साथ व्यवहृत करना होगा। युद्ध उसे करना नहीं था, और फिर किसके साथ युद्ध? अपने ही लघु भ्राता के साथ और वह भी मात्र जमीन के चंद टुकडों के लिये अनगिनत निर्दोष लोगों की युद्धभूमि में यो बलि दी जाय? असंख्य स्त्रियों का सुहाग सिन्दूर ही मिटा दिया जाय? मासूम बच्चों को अपने माता-पिता व स्वजनों से हमेशा के लिये दूर किया जाय? नहीं... नहीं ऐसी हिंसा से मिला राज्य मेरे लिये व्यर्थ है। वडे पैमाने पर हुए नर संहार के उपरान्त प्राप्त विजय से क्या लाभ? न जाने कितने लोगों की हाय उससे जुडेगी? भीमसेन का अन्तर्मन तो अहिंसा का ही विचार कर रहा था। वह प्रेम-युद्ध में ही रत था। अरे, अपने अनन्य प्रेम के बल पर तो भगवान महावीर ने चंडकौशिक सदृश भयकर नाग को वश में कर लिया था तो क्या मैं छोटे भाई को प्रेम से वशीभूत नहीं कर सकता? और यदि नहीं कर सकता तो मेरा प्रेम ही अपूर्ण है। वर्ना प्रेम की शक्ति अपार है, अपूर्व है। कट्टर दुश्मन भी प्रेम की एक नजर से गले मिलने के लिये तत्पर हो उठता है। भीमसेन का मन प्रेम व वैर भाव के बीच निरंतर हिचकोले खा रहा था। उसका अन्तर्मन उसे प्रेम की और खींच रहा था। क्योंकि वह अपने अनुज भाई को अपना शत्रु मानने के लिये तैयार ही नहीं था। वह तो महज उसके अशुभ कर्म का ही एक भाग मात्र है। इसी कारण प्रचंड सेना की बागडोर अपने हाथ में ग्रहण करने के उपरान्त भी जो आग सैनिकों के तन-बदन में व्याप्त थी वह भीमसेन के मन-मस्तिष्क में कतई नहीं थी। वहाँ तो मात्र करूणा का अथाह सागर लहरा रहा था। भविष्य में भले ही तुम राजगृही नरेश बन जाओं। मानव धर्म को तिलांजलि न देना। तुम्हारा राज वैभव और अतुल संपत्ति सब मानवता के अभाव में अर्थहीन है। इसीलिए सर्व प्रथम तुम मानवधर्म को समझो मानव धर्म आत्मसात् करने के उपरान्त राज्यधर्म समझना अधिक उचित और सरल है। दोनों पुत्र सुन रहे थे और पिताजी की आत्मा को तनिक भी दुःख न पहुँचे उसका पालन कर रहे थे। .. सुबह - साँम लगातार यात्रा करने के अनन्तर गंगातट के दर्शन होते ही भीमसेन ने सेना को पडाव डालने का आदेश दिया। सैनिकों ने देखते ही देखते तम्बू तान दिये। घोडे पर कसी जीन उतारी जाने लगी। सैनिकों ने शस्त्रास्त्र एक ओर रख मुक्ति की सांस ली और थकान मिटाने के लिये इधर उधर घूमकर आमोद - प्रमोध करने लगे। T P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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