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________________ संसार एवं स्वप्न एक शुभ संकेत है।" प्रत्युत्तर में गुणसेन ने शांत-स्वर में कहा। "हे स्वामिन्। यदि आप मुझे शुभ स्वप्न का क्या फल प्राप्त होगा, बताने का कष्ट करेंगे तो मुझ पर अतीव उपकार होगा।" "सुलोचने! प्रस्तुत स्वप्न इस बात का संकेत कर रहा है कि शीघ्र ही आपको तेजस्वी पुत्र रल की प्राप्ति होगी।" प्रियदर्शना यह सुनकर आनन्द विभोर हो उठी। भला ऐसी कौन सी स्त्री होगी, जो ऐसी बात सुनकर प्रसन्न न होगी। स्त्री जन्म की सार्थकता ही उसकी मातृत्व प्राप्ति में है। सन्तान विहीन स्त्री का कोई शकुन नहीं लेता। फलतः स्वप्न के माध्यम से यह ज्ञान हो गया कि वह माँ बनने वाली है, उसका हृदय गद्गद् हो उठा। वह प्रसन्नता से झूम उठी। तत्पश्चात् उसने तुरन्त ही पल्ले की गाँठ बाँधी और शकुन ग्रन्थी की, फ़िर प्रसन्न स्वर में बोली "तब तो आपके मुँह में शक्कर, आपका वचन सत्य हो।" उसके बाद रानी ने पुनः गुणसेन को प्रणाम किया और विनय पूर्वक विदा लेकर अपने कक्ष में लौट पड़ी और दास दासियों को एकत्रित कर धर्म कथा एवम् प्रभु स्तवन कहने में तल्लीन हो गयी। भला समय बीतते क्या देर लगती है। पलक झपकते ही सुबह हो गयी। सूर्य किरणों से अभिषिक्त हो गगन चुम्बी इमारतें और हाट हवेलियों की राजगृही चमक उठी। आलस्य त्याग कर सभी अपनी अपनी दिनचर्या में लग गये। रात्रि के समय शान्त-सुख पड़ी राजगृही, सुबह होते ही क्रियाशील हो गयी। मानो राजगृही मगध की राजधानी न हो, सरस्वती का साक्षात् दरबार न हो। गुणसेन व प्रियदर्शना भी अपनी दिनचर्या में लिप्त हो गये। परन्तु रात्रि के स्वप्न को दोनों ही भुला न पाये। राजसभा प्रारम्भ होने के पूर्व ही गुणसेन ने अनुचरों को भेजकर स्वप्न शास्त्री एवम् नैमित्तिकों को राजसभा में उपस्थित होने का निमन्त्रण दे दिया था। राजगृही में भाँत भाँत विषयों के प्रकाण्ड विद्वान निवास करते थे। प्रखर बुद्धि व्याकरण शास्त्री, साहित्याचार्य, कविगण, संगीतज्ञ और युद्ध निपुण योद्धागण नगर की शोभाभिवृद्धि कर रहे थे। गुणसेन ने नैमित्तिकों को आमंत्रित किया। आमन्त्रण प्राप्त होते ही सभी शकुन शास्त्री दरबार में उपस्थित हो गये। राजदरबार ठसाठस भरा हुआ था। नगर जनों को पहले ज्ञात हो गया था कि, उनकी राज रानीने शुभ स्वप्न देखा है, जिसका फलादेश ज्ञात करने हेतु राजा ने बड़े बड़े स्वप्न शास्त्रियों को व ज्योतिष वेत्ताओं को आज बुला भेजा है। अतः नगरवासियों ने भी दरबार में उपस्थित हो, समय से पूर्व ही, अपना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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