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________________ भीमसेन चरित्र "तब तो अवश्य वह कोई मंगल स्वप्न होगा? क्या मुझे नहीं बताओगी? ऐसा कौन सा स्वप्न था, जिससे आज आप प्रातः ही कमल सी प्रफुल्लित हो रही हैं।" "शास्त्रों के अनुसार शुभ व मंगल स्वप्न देखने के पश्चात् कभी सोना नहीं चाहिए। सुपात्र के पास स्वप्न दर्शनका वर्णन करना चाहिए। उसके पश्चात् प्रभुका नाम स्मरण करना चाहिए। अतः श्री नमस्कार महामन्त्र का जाप करते हुए मैं आपके ही उठने की प्रतीक्षा कर रही थी। आपको जागृत हुए जानकर स्वप्न-कथन करने हेतु आपके कक्ष में चली आई।" प्रियदर्शना ने विनीत स्वर में कहा। "तो अब शीघ्र ही कह दो कि स्वप्न में तुमने क्या देखा है?" "हे नाथ! मैंने दिव्य कान्ति से युक्त एवम् अपूर्व मंगलदायक सूर्य का बिम्ब स्वप्न में निहारा है।" "यह भला तुमने कब देखा?" "रात्रि के अन्तिम प्रहर में, किन्तु ऐसा आप क्यों पूछ रहे हैं? क्या स्वप्न व समय में भी कोई सम्बन्ध होता है? प्रियदर्शना को स्वप्न के समय के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी न होने के कारण उसने पूछा। "हाँ देवी! स्वप्न का समय के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक तो आपने बहुत ही शुभ एवम् मंगल स्वप्न देखा है और वह भी रात्रि के अन्तिम प्रहर में। वास्तव में यह गागागागागागागात स OM श्रेष्ठ स्वप्न के बाद दास-दासीयों को, सहेलीयों को एकत्रित कर, सामायिक-स्वाध्याय करती हुई महारानी। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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