SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 188 भीमसेन चरित्र अपनी बुद्धि पर से नियंत्रण खो चुका है। मंत्रीगणों ने विविध राजवैधों को उपचारार्थ आमंत्रित किया है। उचित देखभाल व सेवा सुश्रुषा के बाद अब उन्हे कही स्वास्थ्य लाभ हुआ है। परन्तु अभी भी पूर्णतया स्वस्थ नहीं कहा जा सकता प्राय उदास रहते है। राजकार्य में भी पूर्ववत् ध्यान नहीं दे पा रहे है। राजकार्य के प्रति शंकोच पैदा हो गया है। अपनी पत्नी व दासी - विमला, जिसके कारण यह सब घटित हुआ है, उनको दंड दिया है। उन्हें राजमहल से निकाल दि है। और राजन् वे अब आपके पुनरागमन की आतुरता से प्रतिक्षा कर रहे है। सच तो यह है कि हे कृपानिधान राजगृही को बचा लो। राजगृही की प्रजा अपने उत्तराधिकारी की पलक पलडें बिछाके इन्तजार कर रही है। हे नरेश, हमारा आपसे अनुरोध है कि अब एक पल भी गँवाये शीघ्रातिशीघ्र राजगृही के लिये प्रस्थान करने का विचार करें। राज्य पर विजय प्राप्त करने के लिय नर संहार करने की नौबत नहीं आयेगी। युद्ध किये बीना ही राजगृही आपकी होगी। गुप्तचर के वृतान्त को सुनकर भीमसेन की आँखों में अनायास ही आँसू झलक आये। उसका करूणा हृदय चित्कार उठा : "अरेरे! मेरे लघु भ्राता की यह दशा? कैसा प्रतापी व पराक्रमी था। हाय आज वही महावीर इस अवस्था में पहुँच गया। संभव है, क्रोध में उससे भूल हो गयी हो। परन्तु उसमें भला उसका क्या दोष? यह तो निमित्त मात्र बना। शेष मेरे भाग्य में जो भोगना लिखा था उसे भला कैसे मिथ्या कर सकता था? नहीं... नही... मैं उसे अवश्य ही क्षमा करूंगा और सीने से लगाकर कहूँगा कि अरे पगले! गयी गुजरी भूल SHRINDIA Hibnline हरि सामना भीमसेन के छोटे भाई हरिषेण का अस्वस्थ मन और राजवैयों को बुलाकर चिकित्सा की कार्यवाही! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy