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________________ देव का पराभव 189 जा। जो होना था सो हो गया! एक कुस्वप्न समझकर भूल जा। एक अप्रिय काण्ड समाप्त हो गया। अब नया प्रभात है सुख शांति का सूर्योदय हुआ है। तात आप किन विचारों में खो गये?" ___भीमसेनको शून्य मनस्क देखकर देवसेन ने पूछा। कुछ नहीं, बेटा। अपनी वेदना को छुपाते हुए भीमसेन ने कहां। "अब, आपकी क्या आशा है? केतुसेन ने पूछा। वत्स। मेरी आत्मा तीर्थयात्रा के लिये प्रेरित कर रही है। परन्तु पिताजी यह अवसर तो विजय यात्रा करने का है। बाद में तीर्थयात्रा भी कर लेगें। हमारा प्रथम कर्तव्य राजगृह की सुरक्षा करना है।" देवसेन ने दलील देते हुए कहा। 'बेटा! तुम्हारा कथन सत्य है। तथापि मेरी आत्मा युध्ध की कल्पना मात्र से ही भयभीत हो उठती है। निर्दोषों के रक्तपात से काँप उठती है। और फिर किसके साथ युद्ध? मेरे अपने ही लघु भ्राता के साथ? ना.... ना... मेरे से यह नहीं होगा!" भीमसेन ने अपना असमर्थन प्रकट करते हुए व्यथीत स्वर में कहा 'भीमसेन! यह कोई युद्ध नहीं है। अन्याय का परिमार्जन करना हमारा कर्तव्य है। और कर्तव्य से मुख मोडना निरी कायरता है यहाँ छोटे भाई को तलवार का निशाना नहीं बनाना है, अपितु अन्याय के सामने तलवार उठानी है। अन्याय का सामना करना क्षत्रियों का धर्म है। "विजयसेन ने बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए कहा। तात! हमें युद्ध करने की नौवत नहीं आएगी। गुप्तचरों की जानकारी से तो यही लगता है कि काकाश्री स्वयं हमें राजगृही की बागडोर सौंप देंगे। अवध का राजसिंहासन ग्रहण करने का आग्रह करेंगे।" देवसेन ने कहा। "खैर जैसी तुम्हारी इच्छा। जाओ, प्रस्थान की तैयारी करो सजो शस्त्र शणगार। मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है।" भीमसेन ने स्वकृति प्रदान की। अल्पावधि पश्चात् ही शुभमुहूर्त में भीमसेन व विजयसेन ने सदल - राजगृही की ओर विजय के लिये प्रस्थान किया। देव का पराभव देवी देवताओं का अपना एक संसार होता है। ब्रह्माण्ड से वह संसार कतई भिन्न है। उनकी दुनिया को स्वर्ग की संज्ञा दी जाती है। जहाँ देवी - देचता निवास करते है। ये मानव से अधिक एवं विशेष शक्ति के धनी होते हैं। अपने ज्ञान बल से ये बहुत कुछ अवलोकन कर सकते हैं। साथ ही अपनी इच्छा - शक्ति के बल पर वे हर कही उथल - पुथल मचा सकते है। देवताओं का भी एक व्यवस्थित शासन होता है। वहाँ भी लोक सभा सदृश दरबार लगता है। ऐसे ही एक दरबार में सभी देवतागण विराजमान थे। पारस्परिक चर्चा और आमोद - प्रमोद में सब लीन थे। . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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