________________ 186 भीमसेन चरित्र के हर्ष का पारावार नहीं था। यह जानकर कि जो कुछ हो रहा है वह धर्म के प्रभाव से ही हो रहा है वे स्वयं भी यथाशक्ति पूजा अर्चना में अपना समय व्यतीत कर रहे थे। कुछ ही समय में दोनों ही राजकुमार बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गये। व्यायाम व शस्त्रास्त्र के प्रशिक्षण से उनके बदन फौलादी हो गये थे। - बह्मचर्य के पालन से उनके मुखमण्डल पर अद्भुत तेज झलकने लगा। उनकी सौम्य और दिव्य कांति सभी को अपनी ओर आकर्षित करने लगी। शिक्षा प्राप्ति की अवधि में ही उन्हें ज्ञात हो गया था कि वे राजगृही के भावी उत्तराधिकारी है। काका काकी के षड्यंत्र के कारण उनके माता - पिता को राजसिंहासन का परित्याग कर रातों रात पलायन करने के लिये बाध्य होना पड़ा अतः जैसे जैसे शिक्षा प्राप्त करते गये तैसे तैसे उनका विश्वास और विचार दृढ से दढतर होता गया कि भविष्य में किसी भी मूल्य पर उन्हें राजगृही पर अपना प्रभुत्व प्रस्थापित करना है उसे अधिकार में लेना है। और वही करना है। प्राणाहूति देकर भी करके रहेंगे। कालातरं में उनकी शिक्षा - दीक्षा पूर्ण हुई। शारीरिक व मानसिक दोनों ही क्षेत्र में वे प्रशिक्षित हो चुके थे। उनका मन अब राजगृही लौटने के लिये विह्वल हो रहा था। "तात यदि आप की अनुज्ञा हो तो राजगृही पर आक्रमण कर दें। देवसेन ने एक बार अवसर देखकर कहा। IDA UPORN होनसामपुरा केतुसेन-देवसेन राजगृही नगरी पर चढ़ाई करके वापिस राज्य प्राप्त करने की पिताजी से आज्ञा मांगते हुए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust