________________ करो शस्त्र शणगार 185 तत्पश्चात् भीमसेन ने सेठ को खडा किया उसका अपराध क्षमा कर दिया, और उसके पास रहे शस्त्रों को ग्रहण कर गंभीर स्वर में कहा “श्रेष्ठिवर्य! मानव से भूल हो सकती है। पूर्वजों ने असत्य नहीं कहा : 'मानव मात्र भूल का पात्र' सही रूप में एक बार की भूल को भूल मान लिया जाता है परन्तु यही भूल यदि अधिक बार दोहरायी जाय तो अपराध बन जाती है। अतः पुन ऐसी भूल करने का दुस्साहस न करे! देह पर पड़े दाग को तो स्नान से तुरन्त साफ कर सकते है किंतु आत्मा पर लगे दाग धोने से भी नहीं जाते और न जाने कितने भवों तक भटकना पडता है तत् पश्चात् ही जीव निष्पाप हो सकता है। अतः हे सेठ! भविष्य में आत्मा को सदैव उज्जवल रखने का प्रयत्न करना। अब आप मुक्त है जहाँ चाहे वहाँ जा सकते है।" भीमसेन ने मुदु स्वर में कहा। सेठ ने भीमसेन की सलाह सिरोधार्य कर उन्हे शत-शत प्रणाम कर विदा मांगी। अरिंजय तो भीमसेन की करुणा व मानवता के दर्शन कर हतप्रभ रह गया। अपने भानजे को ऐसे उत्तम गुणों से युक्त जानकर अरिंजय का वक्षस्थल गर्व से भर गया। लगभग वे कई दिनों तक मामा- भानजे साथ साथ रहे। इस अवधि में वे दोनों आपस में विचार विमर्श करते रहे... विचारों को आदान-प्रदान करते रहे। अरिंजय ने दोनों बालकों को स्वर्ण खिलौने भेट दिये और भीमसेन व सुशीला को बहु मूल्य आभूषण - वस्त्र व सुवर्ण मुद्राएँ उपहार स्वरूप प्रदान की। विदाई की बेला में स्नेहार्द्र हो, कहा भीमसेन! जब कभी कोई आवश्यकता हो मुझे संदेश प्रेषित करना। शीघ्र ही उस पर कार्यवाही होगी। अब तुम संकोच मत करना। और जब राजगृही के लिये प्रस्थान करो तो मुझे अवश्य सूचित करना।" ____ भीमसेन ने महाराज अरिंजय के चरणों में मस्तक झुका दिया। उन्होंने आशीर्वाद दिया और अपने नगर के लिय प्रयाण किया। महाराज अरिंजय के प्रस्थान अनन्तर भीमसेन ने सारा समय दोनों पुत्रों के पालन पोषण में लगा दिया। दोनों की अवस्था अब ऐसी हो गयी थी कि उनके जीवन - पौधे को सुसंस्कार एवम् शिक्षा रूपी निर्मल जल से सिंचित किया जाय। उनके पठन-पाठन की ओर यथोचित ध्यान दिया जाय। भीमसेन स्वयं उन्हें प्रशिक्षण देने लगा तथा अन्य विषयों के लिये विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया। समय के साथ दोनों ही राजकुमारों का जीवन गठन राजगृही के भावी राज्याधिकारी के अनुरूप होने लगा। देवसेन व केतुसेन अत्यन्त चपल व बुद्धिमान थे। वे एकचित होकर अध्ययन करने लगे। राजकुल के अनुकूल सभी शस्त्रों तथा शस्त्रास्त्रों की शिक्षा आत्मसात् करने में तल्लीन हो गये। दिन ब दिन हो रहे संतानो के विकास क्रम को परिलक्षित कर सुशीला व भीमसेन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.