________________ करो शस्त्र शणगार 183 राजगृही परित्याग के बाद तुम्हें कहीं देखा है। किन्तु वह तुम ही थे या अन्य वह कहना कठिन है। बिलकुल तुम्हारे जैसा ही था। बोलने का तरीका भी तुम्हारे जैसा ही था। वही स्वर वही रूप-रंग। अन्तर मात्र इतना था कि वह निस्तेज व कंगाल था। उसकी काया बिलकुल कृश व वस्त्र भी फटे पुराने थे। सुनते ही भीमसेन की आँखें सजल हो गयी। वास्तव में वे दिन ही ऐसे कष्टधारी थे कि जिनकी स्मृति मात्र से ही हृदय बरबस और आहत हो उठता है। अतीत की स्मृतियाँ उसके हृदय को रह रह कर कचोट रही थी। "भीमसेन! तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों?" अरिंजय ने आश्चर्य से पूछा। 'मामाजी! वह अभागा निर्धन व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि मैं ही था। आपके पास नौकरी की याचना करने आया था।' ___ 'अररर! और मैंने तुम्हें इन्कार कर दिया। हे भगवान! यह मैंने क्या किया? मेरे हाथों ऐसा कार्य करवाया? भीमसेन! मुझे क्षमा कर दो वत्स! मैंने तुम्हें दुःख पहुँचाया, मैं तुम्हें उस समय पहचान नहीं सका। मुझे क्षमा कर दो।' अरिंजय ने अपनी भूल स्वीकार कर ली। वह अपने कृत पर लज्जित था। ___"मामाजी! इसमें भला आपका क्या दोष? अपराध तो मेरा था। पूर्व भव में मैंने ही कोई अशुभ कर्म बंधन किया होगा। वरना राजा को ही कहीं नौकरी के लिये दर : | भटकना पड़े। सही अर्थो में तो हम सभी ही कर्म के हाथों की कठपुतली है। नियः | ऐसा नाच नचाती है वैसा ही नाचना पडता है।" भीमसेन ने सहजता से कहा "परन्तु भीमसेन! तुम्हें तो अपना परिचय देना चाहिये था नं? अगर ऐसा कस्ते तो क्या मैं तुम्हें दुःख भोगने पर दर दर की ठोकर खाने के लिये छोड देता?" 'मामाजी! जो होना था वह हो गया। अब भला रंज किस बात का? मेरे प्रति आपके मन में इतना ममत्व है यही मेरे लिये पर्याप्त है।' भीमसेन ने स्थित प्रज्ञ होते हुये गंभीर स्वर में कहा। तुम्हारा कथन सत्य है, वत्स! परन्तु तुम यह तो बताओ कि एक वर्ष तक तुम कहाँ रहे? क्या किया? लाख प्रयलों के पश्चात् भी भीमसेन मामा के आग्रह को टाल . नहीं सका और उसने पूरा वृत्तांत सुना दिया। अरिंजय एक एक घटना पर आँसु टपका रहा था। किंतु भीमसेन ने जब शस्त्रों की ठगी की घटना सुनायी तब अनायास ही उसके आँसू आँखो में ही थम गये। और उसका अंग-प्रत्यंग गुस्से के मारे काँपने लगा। क्या कहा? उस सेठ की यह मजाल? उसके अपराध का दण्ड देना ही पड़ेगा। अपरिचित परदेशी को इस प्रकार लूटनेवाले देशवासीयों को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिये।“ अरिंजय ने क्रोधित होकर कहा। "नहीं मामा! वास्तव में वह सेठ पारितोषिक का पात्र है। मेरे पर उसके अनंत उपकार है यदि वह मुझे एक वर्ष तक आश्रय नहीं देता तो आपके नगर में न जाने मेरी क्या दशा होती?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust