________________ 182 भीमसेन चरित्र नहीं रहा। बल्कि तपश्चर्या के अपूर्व तेज से उल्लसित हो रहा था। विजयसेन ने तप की पूर्णाहूति के अनन्तर भीमसेन को अपने शरीर की अधिकाधिक देखभाल करने का आग्रह किया। तदनुसार स्वास्थ-लाभ हेतु वह नियमित रूप से औषधि व पौष्टिक आहार ग्रहण करने लगा। इन सबके कारण अंगोपांग से राजतेज टपकता था। उसकी मुखमुद्रा प्रभावी व प्रतापी दृष्टिगोचर होने लगी। अल्पावधि पश्चात् उसने राजगृही लौटने का निर्णय किया। करो शस्त्र शणगार प्रतिष्ठानपुर नरेश अरिंजय को यह समाचार प्राप्त हुये कि उनका भानजा भीमसेन सपरिवार क्षितिप्रतिष्ठित नगर में वास कर रहा है। वहाँ उसने एक दिव्य जिनालय का निर्माण किया है। कलश की घटना की जानकारी भी उन तक पहुंच गई थी। मन ही मन उन्होंने अपनी परम विदुषी सती साध्वी सुशीला को प्रणाम किया। ____ वैसे मामा-भानजे के नगर के मध्य विशेष दूरी नहीं थी। एक बार पूर्व कार्यक्रम के अनुसार अरिंजय प्रवास कर विजयसेन का अतिथि बना। ___अपने साढू विजयसेन के यहाँ मामा के आगमन के समाचार प्राप्त होते ही भीमसेन उनसे भेंट करने शीघ्र ही राजमहल पहुँचा। ___“मामाजी! भानजे का सादर प्रणाम स्वीकार करें।" "अरे। भीमसेन तुम? कुशल मंगल तो है? मामाने भानजे का हाथ अपने हाथ में लेते हुये मृदु स्वर में कहा।" मातामह! आपके आशीर्वाद से सब मंगलमय है। भीमसेन की आवाज की झंकार व बोलने के ढंग को देखकर अरिंजय कछ क्षणों के लिये गहरे सोच में पड़ गया। उसके हृदय में हलचल मची। उसे अहसास हुआ, जैसे भीमसेन को इससे पूर्व कहीं देखा है? पर कहाँ देखा? कुछ भी तो स्मरण नहीं हो रहा। अरिंजय ने अपने मस्तिष्क पर जोर डाला। बहुत कुछ सोचने के उपरांत उसे कुछ-कुछ स्मरण होने लगा। कृश देहवाले, निस्तेज मुख, दीन और म्लान भीमसेन की उन्हें कुछ झलक मिल गयी। परन्तु यही वह भीमसेन था या और कोई? समझ में नहीं आ रहा था। अरिंजय लाख प्रयत्नों के उपरांत भी ठीक से तय नहीं कर पा रहा था। इधर मामा को विचार मग्न देख, भीमसेनने उत्सुक हो, पूछा : क्या बात है मामाश्री? आप तो किसी गहरे विचार में मग्न हो गये। कुशल मंगल तो है न? भीमसेन! इससे पूर्व भी मैंने तुम्हें कहीं देखा है? परन्तु कहाँ? स्मरण नहीं हो रहा है। “अरिंजय ने अपनी विवशता बतलायी।" "इसमें भला स्मरण क्या करना? राजगृही नगर में कहीं देखा होगा।" भीमसेन ने वास्तविकता छिपाते हुये मजाक भरे स्वर में कहा। नहीं... नहीं ऐसी बात नहीं है। अरे P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust