________________ महारती सुशीला . 181 पर पुष्प वृष्टि की। नगर की सन्नारियों ने मधुर कंठ में महारानी के स्त्रीत्व के मंगल गीत गाये। सर्वत्र ही आनन्द और उमंग व्याप्त था। एक शुभ मुहूर्त पर अल्प समारोह के साथ जिनालय में श्री शांतिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। आस-पास में अन्य तीर्थंकर देवों की प्रतिमायें भी प्रतिष्ठापित की गयी। इस प्रसंग पर भीमसेन ने सोत्साह अतुल धन-राशि व्यय की। शांति स्नात्र महोत्सव आयोजित किया। श्रमण-श्रमणीयों को सुपात्र दान प्रदान किया और अनेक जीवों को अभयदान दिया। देवताओं द्वारा प्रदत्त धन संपदा में से जो कुछ भी थोडा शेष बचा था उसे भीमसेन ने शुभ कार्यो में खर्च दिया। उपाश्रय बनवायें प्याऊँ, पाठशालायें बनवायी। दीन-दरिद्रों में प्रभावना वितरण की। इसी अवधि में भीमसेन का तप भी निर्विन पूरा हो गया। पारणा के दिन नूतन जिनालय में श्री शांतिनाथ भगवंत का भक्तिभाव से पूजन अर्चन किया। श्रमण भगवतों को गोचरी प्रदान की और दीन-हीनों को मुक्त हस्त से दान दिया। इस प्रसंग पर भी अठ्ठाई महोत्सव का आयोजन किया गया। रह रह कर भीमसेन इन सब का कारण तप को ही मान रहा था। तप के प्रभाव से ही उसके दुःखों का अन्त हुआ है। इस बात का उसे पूरा अहसास हो रहा था। तप के कारण उसकी आत्मा शुद्ध बन गयी। शरीर भी तप के प्रभाव से अछूता IUTHUn हरि सोमना . . . . भीमसेन ने शान्तिनाथ प्रभु के नूतन जिनालय में पूजा करने . का चढ़ावा लेकर पूजा की, और आरती उतारी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust