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________________ 174 भीमसेन चरित्र सुशीला, देवसेन व केतुसेन की सेवा सुश्रूषा कराने में विजयसेन ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी। राजवैद्य एवम् विख्यात चिकित्सकों के द्वारा उनके रोगों का निदान करवाया। राजवैद्यों ने जडी-बुट्टियों के द्वारा यथा उचित उपचार व सेवा-सुश्रूषा की। इन तीनों को अब किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं थी। पूर्णतया आराम था। सुख की नींद थी। भरपेट भोजन था और निश्चिंत मन था। सुशीला के प्रति उसके बहन-बहनोई के मन में अथाह स्नेह था। ठीक वैसे ही भीमसेन भी अब उसके साथ था। वियोग का दुःख नहीं था। बालक भी बाल सुलभ लीलाओं में दिन रात मस्त थे। पति व पुत्रों को सुखी व स्वस्थ देखकर सुशीला का हृदय आनन्द के सागर में हिलोरे ले रहा था। देवसेन व केतसेन भी मौसाजी के भव्य राजमहल के वातावरण रूपी दूध में शक्कर की भांति समस्त हो गये थे। अब वे निःशंक थे। उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं था। वे नीडर होकर क्रीडा करते थे। जो चाहिये वह एक आवाज में मिल जाता। साथ में माता-पिता का पूर्ण सांनिध्य था। किसी के प्रति कोई शिकायत उनके मन में नहीं थी। अल्पावधि में ही आराम, आनंद व औषधियों का प्रभाव भीमसेन के परिवार पर दृष्टिगोचर होने लगा। उनकी देह का रंग बदलने लगा। कृश काया में रक्त संचार होने लगा। निर्बल हड्डियों में बल आने लगा, आँखों में चमक व गालों में सूर्जी छा गई। शुष्क एवं निस्तेज चमडी में सौन्दर्य खिलने लगा। INE IMANYTHIN हारन्मामला प्रतिक्रमण - नवकार महामंत्र की माला गिनते आत्मशान्ति की प्रतीति करने में भीमसेन, और पौष्टिक आहार एवं जड़ीबुट्टीओं द्वारा पूर्वावस्था जैसा स्वास्थ्य प्राप्त करता हुआ परिवार। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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