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________________ महारती सुशीला 173 भीमसेन और सुशीला ने अलंकारों का ध्यान से निरीक्षण किया। एक भी आभूषण कम नहीं था। देखा? यही धर्म है। जब तक अशुभ कर्मों की छाया हम पर रही तब तक ये हम से दूर थे। हमारे होने पर भी ये अन्यत्र थे। आज जब हमारे अशुभ कर्मों की बदली छंट गई है तो पुनः ये आभूषण स्वतः ही हमारे पास आ गये है। वाह धर्मराज! वाह! तेरी भी लीला अद्भुत है। भीमसेन ने अनास्तिक भाव से कहा। इस घटना से भीमसेन की धर्म में और अधिक निष्ठा बढी। उसे अब पूर्णतया स्पष्ट हो गया कि शुभ-अशुभ कर्मों का फल हमें अवश्य ही मिलता है, इसी दिन से भीमसेन ने वर्द्धमान तप का आरम्भ किया। महासती सुशीला शुभ मुहूर्त पर भीमसेन ने विधि पूर्वक वर्धमान तप आरम्भ किया। हालांकि विजयसेन व सुलोचना ने भीमसेन को लाख समझाया कि वह तपश्चर्या के लिये शीघ्रता न करें। उनका कहना था कि विगत लम्बे अंतराल से वह भूख-प्यास, थकान व अनिद्रा को सहन करता रहा है। कई दिनों तक इधर उधर भटकता रहा है... दर दर की खाक छानी है। फलतः शरीर कृश हो गया है... देह थक गई है। निर्बल काया को लेकर ऐसी उग्र तपश्चर्या आरम्भ करने से शरीर एकदम क्षीण हो जायेगा। जबकि शरीर तो धर्म व कर्म का साधन है। उसे ऐसे ही बिगाड दिया जाय तो दोनो ही बिगड़ेंगें। इसी कारण विजयसेन ने इस अवस्था में तपश्चर्या करने के लिये भीमसेन को मना किया। "विजयसेन! आपका कथन यथार्थ है। तुम सबकी ओर से जो प्रेम, आदरभाव व स्नेह भाव मुझे मिला है, साथ ही निबास के लिये सुन्दर आवास, स्वादिष्ट भोजन और सुन्दर वस्त्राभूषण यह सब धर्म का ही फल पूज्य श्री धर्मघोषसूरि महाराज को दिये गये सुपात्र दान का सबल परिणाम है। वैसे देखा जाय तो तप से आत्मा व शरीर दोनों ही निर्मल बनते है। आप सबका मेरे लिये होना स्वाभाविक ही है। इसे मैं भली भांति समझ रहा हूँ। परन्तु आपकी चिन्ता निरर्थक है। तप के प्रभाव से सब कुछ ठीक होगा, भीमसेन ने विजयसेन की एक नहीं मानी। अपनी बात पर वह अटल रहा। अपनी आत्मा के आग्रह को वह टाल नहीं सका। फलतः विजयसेन ने पुनः आग्रह नहीं किया। तपारम्भ के प्रथम दिन ही भीमसेन को दिव्य शांति का अनुभव हुआ जैसा पूर्व में कभी नहीं हुआ। समस्त मानसिक वेदनाएँ शांत... प्रशांत हो गयी। दग्ध हृदय को जैसे शीतलता का सानिध्य मिल गया हो आयंबिल के सूखे रसहीन आहार में भी उसे अपूर्व मिठास का अनुभव हुआ। प्रभु-पूजा व प्रतिक्रमण करते हुये उसकी आत्मा आनन्दित हो उठी। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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