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________________ 172 भीमसेन चरित्र परन्तु कर्म की लीला बडी विचित्र है। देखो! वही कंथा व सुवर्णरस आज स्वयं मेरे पास आ गये है। भीमसेन की यह बात सुनकर सुलोचना को सहसा कोई बिसरी बात याद हो आयी। और वह तुरन्त ही अपने स्थान से खड़ी हो गई। ‘क्यों बहना! खडी क्यों हो गई? क्या यह बात तुम्हें पसंद नहीं आयी।' नहीं दीदी। ऐसी बात नहीं है। कंथा और रस की बात निकली तो मुझे सहसा स्मरण हो आया कि आपके रत्नजडित आभूषण पुनः आपको सौंप दूं?" 'मेरे आभूषण? भला तुम्हारे पास कहाँ से आ गये?' सुशीला ने आश्चर्य से पूछा, 'यह घटना मैं बताता हूँ।' विजयसेन ने बात को अधिक स्फूट करते हुए कहा। सुलोचना इस बीच आभूषणों का संदूक लेने भीतर चली गई। एक बार हमारे नगर के एक जौहरी की दूकान पर एक परदेशी का आगमन हुआ। जौहरी को उसने एक पोटली दी। पोटली खोलने पर उसमें से बहुमूल्य आभूषण निकले। फलतः जौहरी ने जिज्ञासावश उक्त परदेशी से पूछा “महानुभाव! आप ये आभूषण क्यों तुडवा रहे हो?" "मैं इन्हें बेचना चाहता हूँ। इसका उचित मूल्य करके झे दाम दे दें। इस समय मेरा हाथ तंग है और अब इस पर ही मेरा जीवन निर्भर है।" ___ जौहरी ने प्रत्येक आभूषण का सूक्ष्म निरीक्षण किया... उन्हें घूमा फिरा कर बार बार देखा। उसके मन में शंका उत्पन्न हो गई, हो न हों यह अलंकार इसके नहीं हो सकते। एक सामान्य व्यक्ति की इतनी विसात हो ही नहीं सकती कि ये बहुमूल्य आभूषण गढवाये। ऐसे अलंकार तो किसी राजा-महाराजा एवम् राज परिवार के ही हो सकते है। साथ ही आभूषणों पर सजमुद्रा देखकर तो उसका शक हकीकत में बदल गया, उसने कुछ सोचकर परदेशी से कहा। "तुम तनिक यहां बैठो। तब तक मैं इसके दाम लेकर आता हूँ।" और इस तरह परदेशी को बिठाकर जौहरी भागा-भागा मेरे पास आया। सारा वृतान्त सुनाया। मैंने सैनिक को भेजकर उसे कारावास में बन्द करवा दिया। और आभूषणों के बारे में पूछताज की। ___ आरम्भ में तो वह एक ही बात दोहराता रहा कि, ये आभूषण उसके ही हैं। इधर मैंने भी अलंकारो का ध्यान से निरीक्षण किया। सुलोचना ने भी यथोचित निरीक्षण किया। इन पर जैसी राजमुद्रा थी ठीक वैसी ही राजमुद्रा सुलोचना के आभूषणों पर भी अंकित थी। अतः हमने अनुमान लगाकर यह निश्चय कर लिया कि हो न हो ये आपके ही आभूषण हो सकते है। और संभव है इन्हें वह आपके पास से चोरी कर लाया होगा। अतः परदेशी को कैदखाने में बंद कर दिया और अलंकार सुरक्षित रखने के लिये सुलोचना के हवाले कर दिये।" "दीदी! यह लो, आपके आभूषण। संभाल लो, आपके ही है न?" तब तक सुलोचना भी आभूषणों को ले कर आ पहुँची। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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