SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिवार का मिलन 171 माता की ममता व पिता का वात्सल्य एक साथ बरस रहा था। जब जी में आता वे खेलते और मन अघाता तो आपस में बतियाने लगते। खेलते खेलते कभी कभार थक जाते तो मुलायम गद्दों पर लम्बी तान देते... एक लम्बे अन्तराल के पश्चात् भीमसेन के परिवार ने सुख की सांस ली थी। तीसरे दिन की दुपहर में परिवार के सभी लोग भीमसेन के ईर्द गिर्द बैठे थे। सुशीला व सुलोचना भी वहाँ उपस्थित थी। देवसेन व केतुसेन निकट ही खिलौने से खेल रहे थे। "विजयसेन! कुछ समझ में आया? जब तक अशुभ कर्मों का उदय होता है, मानव सुख की साँस नहीं ले सकता। दुःख के असह्य बोझ तले वह दिन-प्रतिदिन सतत कुचला जाता है। परन्तु यही अशुभ कर्म जब समाप्त हो जाते है और शुभ कर्मों का उदय होता है तब सुख की बेला आते तनिक भी विलम्ब नहीं लगता। सुख दुःख का यह चक्र निरन्तर चलता रहता है। न तो सुख स्थाई है और ना ही दुःख। बल्कि दोनों ही अस्थिर बन कर लगातार घूमते रहते है। न जाने पूर्व भव में मैंने कैसे अशुभ कर्म बंधन किये होंगे, कि इस भव में हमारी ऐसी दुरावस्था हुई है।" और अब जब कि अशुभ कर्मों के बन्धन कट गये हैं, तब स्वतः ही पुनः हमारा सब कुछ मिलने लग गया। कंथा के चोरी होने तथा सुवर्ण रस के छिन जाने पर मैं अत्यधिक हताश हो गया था, कि मृत्यु से अधिक जीवन दुष्कर व दुःसह्य लगने लगा था। फलतः जीवन का अन्त करने की दृष्टि से ही मैंने गले में फांसी का फन्दा डाला था। HIUSA CHURN TITIP DIT / illu iii माता nr वि.B मालगागरण Hinmnimum 18A (II/IIIIIIURATI हिरि-सोमा अरे बहिन सुलोचना - खोए हुएँ मेरे सारे आभूषण - तुम्हारे पास में कैसे आएँ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy