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________________ 170 भीमसेन चरित्र भीमसेन के राजमहल में प्रवेश करते ही सुशीला ने अक्षत व पुष्पों से उनका स्वागत किया आरती उतारी और भीमसेन के चरणों में नतमस्तक हो नमस्कार किया। सुशीला की आँखों से प्रवाहित अश्रुधारा भीमसेन के चरणों को भिगा रहे थे। भीमसेन स्नेह विह्वल हो उठा। सुशीला से आकस्मिक मिलन से उसकी आँखों से भी प्रेमाश्रुओं की झडी लग गयी, जो सुशीला की घनी श्यामल केश राशि पर टप... टप गिरने लगे। 'अखंड सौभाग्यवती हो' हर्ष से अवरूध्ध कंठ से भीमसेन ने किसी तरह सुशीला के माथे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। सुशीला लज्जावरा सी तनिक परे हट गई। भीमसेन दो कदम आगे बढा। इधर देवसेन व केतुसेन भी मां... मां करते आगे बढे और एक दूसरे सुशीला के गले में झूल गये। अपूर्व वात्सल्य से सुशीला ने दोनों बालकों को हृदय से लगा लिये। अपने माता-पिता को एक साथ देखकर दोनों बालक आनन्दित हो उठे। प्रसन्नता के भाव उनके मुख पर स्पष्ट झलक रहे थे। भीमसेन का अनुसरण करते हुए तीनों ने प्रवेश किया। _ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विजयसेन के राजमहल में किसी भव्य उत्सव का योजन हो। स्नेही स्वजनों के प्रेम मिलन से महल का कोना कोना किलक रहा था। रों ओर आनन्द का अद्भूत वातावरण व्याप्त था और प्रसन्नता की रश्मियों महल के चप्पे-चप्पे को ज्योतिर्मय कर रही थी। विगत तीन वर्षों की अवधि में तो सुशीला व भीमसेन पर न जाने कैसी-कैसी विपदाओं का पहाड टूट पडा था, कि अगर आज उसका लेखा जोखा करने बैठे तो भी पार नहीं आये। लगातार तीन दिन तक स्नेही-स्वजन साथ रहे। इस अवधि में विजयसेन ने राजकाज की ओर झांका तक नहीं। वह अपने स्वजनों की सेवा में निरन्तर उपस्थित रहा। __ दोनों बहनों ने जी भर कर सुख-दुःख की बातें की। सुशीला ने अपनी आप बीती देवी सुलोचना को सुनाई। भीमसेन ने भी अपनी कर्म कथा से राजा विजयसेन को अवगत किया। ठीक वैसे ही सुशीला व भीमसेन ने अपनी विपदा व यातनाओं की चर्चा की। एक अनोखा दृश्य बना था। जहाँ नयनो से आनन्द के अश्रु बह रहे थे तो उसी क्षण अतीत की भोगी पीडा के अश्रु भी छलक रहे थे। पुनर्मिलन के सुखद क्षणों में वहाँ सबका हृदय गद् गद् था वही पर वियोग के क्षणों में मिली यातनाओं को स्मरण कर उनका हृदय आक्रंदन कर उठता था। जबकि देवसेन व केतुसेन की तो राजमहल में बन आई थी। वर्षों बाद आज उन्हें सुख व ऐश्वर्य मिला था। खाने के लिये पेट भर स्वादिष्ट भोजन, खेलने के लिये रत्नजटित खिलौने और शयन के लिए मक्खन से भी मुलायम शय्या। वहाँ कोई रोकने - टोकने वाला भी नहीं था। और ना ही किसी प्रकार का बंधन, लम्बे अन्तराल के बाद P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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