________________ परिवार का मिलन 169 परिवार का मिलन भीमसेन और विजयसेन के आगमन के पूर्व ही सुशीला व सुलोचना का महल में समागम हो गया। सुशीला की अधीरता निरन्तर बढती ही जा रही थी। वह बार बार रोमांचित हो उठती थी। तीन वर्षों के लम्बे अन्तराल एवम् दुःखद वियोग के पश्चात वह आज अपने प्रागवल्लभ के दर्शन करने वाली थी। उसकी उमंग और उत्साह का कोई पारावार नहीं था। चंचल मन से वह अपने प्रियतम की अपलक प्रतीक्षा कर रही थी। सुलोचना ने राजमहल में आते ही सुशीला को राजरानी योग्य राजसी वस्त्र परिधान कराये। बहुमूल्य अलंकारो से उसका शृंगार किया। सुशीला की देह कृश हो गयी थी। परन्तु सतीत्व की प्रखर आभा उसके मुख पर अंकित हुई थी। उसकी नयनों की निर्मलता सभी के हृदय में परम शांति और सुख की अनुभूति करा रही थी। रेशमी परिधान में उसका रूप साक्षात् सौन्दर्य को लज्जित कर रहा था। वह एकाध तेज-दीपिका सी सोह रही थी। - कुछ दूरी से उसने भीमसेन का जयनाद सुना। और वह स्वामी के स्वागतार्थ शीघ्र ही उतावली हो उठी। हाथ में रहे सुवर्ण थाल में आरती की पवित्र ज्योति रेखाएँ टिमटिमा रही थी। सुगन्ध व दीप शिखाओं के प्रकाश में उसका सुकुमार सौन्दर्य दैदिप्यमान हो उठा। ANDIDAN किमी सुशीला के आकस्मिक मिलन से हर्ष विभोर होकर धर्मपत्नी के मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए भीमसेना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust