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________________ भाग्योदय 167 चलते चलते भीमसेनने उसकी राम कहानी सुनाई। पश्चात् विजयसेनने तुरंत उसको सम्हाल कर रखने के लिए सुभटों को आदेश दीया। भीमसेन और विजयसेन बड़े ठाठ के साथ राजमहल जा रहे थे। अब महल बिलकुल नजदीक आ गया था, तब यकायक एक अंध संन्यासी थोडे दूर बैठा बैठा करुण पूत्कार कर रहा था। अरे! कोई मुझे बचा लो। असह्य वेदना से मैं मर रहा हूँ। हाय रे! मैं तो लूट गया रे...! कुबुद्धिने मुझे मार डाला रे... भीमसेनने शीघ्र ही उस संन्यासी को पहचान लिया। 'उस सिद्धपुरुष को यहां ले आओ,' भीमसेनने एक सुभट को आज्ञा की। सुभट उस संन्यासी को ले आया। नमस्कार सिद्ध पुरुष! आप कुशल तो हैं न? अरे! आपकी आंखों को क्या हुआ है? अंध आंखों की तरफ देखते हुए भीमसेनने पूछा। कौन भाई? यह भीमसेन की तो आवाज नही क्या? सिद्धपुरुषने आवाज पहचान ली। हा महात्मन्! मैं भीमसेन हूँ “किन्तु यह दुर्दशा कैसे हुई?" भीमसेनने साश्चर्य पूछा। कौन भीमसेन? भाई तू? अरे! मैं तो बरबाद हो गया हूँ। अरेरे मैंने तुमके कितना दुःख दिया। उसका फल जानते हो? यह अंधापा इसी का फल है। ENERARJ MAMMAR AMANANDMel SE Ei हरिसोमर जटाधारी सिद्धपुरुष भीमसेन के पाँवों में गिरकर वारंवार क्षमा मांग रहा हैं, और अपनी भूल के लिए शरमिंदा हो रहा हैं। . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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