________________ 166 भीमसेन चरित्र डोली राजमहल की ओर रवाना हुई। इधर भीमसेन और विजयसेन भी कुंमारों के साथ राजमहल की ओर आ रहे थे। 'नगर नरेश खुद पैरो चलकर प्रथम बार राजमहल की ओर जा रहा है। यह सुनकर उसका सत्कार करने व राजा भीमसेन को निहारने के लिए नगरजन चौटे-चौराये - गवाक्ष - झरोखों में भीडभाड लीये खडे रह गये थे। जहां जहां से उनका गुजरान हुआ वहां पर प्रजाजनने फूलहार से उनका स्वागत किया, और जयनाद से गगन को गुंजायमान किया। नगर चौक से गुजरते हुए रास्ते में एक वृक्ष पर बैठे कपिराजने भीमसेन का अपूर्व स्वागत किया। उसने फूलों का हार इस प्रकार फेंका कि सीधा भीमसेन के गले में ही जा पडा। . भीमसेनने उपर देखा तो एक बंदरराज था। दोनों हाथ जोड नमन कर रहा था। बंदर की ऐसी भक्ति देखकर भीमसेन घडी भर दंग रह गया। कपिराजने तुरंत एक गंदी और जीर्ण कंथा को डाल पर से गिरायी, जो बराबर भीमसेन के पैरों आगे आ पड़ी। ____ भीमसेनने तुरंत उठाकर बडी ममता से उसे होठो पे लगाया, अरे! भीमसेन! यह क्या कर रहे हों? ऐसी मलीन कंथा को छूते हों? छि! छि! 'फैंक दो उसे! विजयसेनने भारी जुगुप्सा प्रगट कर कहा। ___'विजयसेन! इस गंदे वस्त्र में मेरे पसीने की कमाई छीपी हुई हैं। यह मात्र गंदी कंथा ही नही अपितु अमूल्य रनों का खजाना हैं। भीमसेनने प्रत्युत्तर में कहा। फिर . COM AMPA an-un रिसोनपुरा खोई हुई जीर्ण कंथा को बंदर वृक्ष की शाखा पर से तुरंत ही नीचे फेंक रहा हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust