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________________ 162 भीमसेन चरित्र चलो हम सब राजमहल जायेंगे। वहां पर खूब खाना-पीना, खेलना, अच्छे कपड़े पहनना और जी भर अमन चमन करना। विजयसेनने कुंवरों को आश्वासन देते हुए कहा। सच पिताजी! अब हमको खुब खाना-पीना मिलेगा? केतुसेनने कहा। तब बीचमें ही देवसेन बोल उठा। पिताजी! ये महानुभाव कौन है? और हमें उनके वहां क्यों ले जाना चाहते हैं? "बेटा! प्रणाम करो। ये तुम्हारे "मौसाजी है। इस नगर के महाराजाधिराज है। आप हम सब को लेने आये है" भीसेनने परिचय देते हुए खुलासा कीया। दोनों कुमार इस बात को सनकर आनंदित हो उठे। फिर तो कहना ही क्या दोनों हँसते-हँसते विजयसेन को भेट पड़े। विजयसेनने भी स्नेहार्द्र हो दोनों को सहलाये, और केतुसेन को पकड कर चल पडे। भीमसेन ने देवसेन की ऊंगली पकड ली, और सब नगर की ओर रवाना हो गये। चलते चलते विजयसेनने सेवकों को आज्ञा दी "जाओ महारानी को जल्दी समाचार दो कि आपके बहन - बहनोई सपरिवार अपने नगर पधारे है, और राजमहल में आ रहे हैं। दुसरे सेवकों को कहा : 'तुम सब नगरशेठ की हवेली पर जाओ, और रानी सुशीला को यह शुभ समाचार दो, उन्हे आदर सन्मान के साथ राजमहल ले आओ" SAAN सरिसीमा महारानी सुलोचना को अपनी हवेली पर आई देख कर नगर शेठ और शेठाणी आश्चर्यचकित होकर गभरा उठे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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