________________ भाग्योदय 163 दोनों सेवक गण विजयसेन महाराजा की आज्ञा पालन हेतु रवाना हुए। इतना बडा प्रसंग छूपा-छूपाया थोडा रहता हैं, देखते ही देखते पुरे नगर में बात हवा की तरह फैल गयी। 'राजगृही नरेश भीमसेन महाराजा और महारानी सुशीला सपरिवार यहां पधार रहे हैं। सुलोचना को इस बात का पता पहले से ही कोई सेवकने दे दिया था। अतः वह अपनी बड़ी बहन को ले आने के लिए डोली में बैठकर रवाना हो गई। ___रास्ते में ही विजयसेन के सुभट मिल गयें। उन्होंने दुसरे ही समाचार सुनाये। तुरंत ही पालखी नगरशेठ की हवेली की ओर करवा ली। महारानी सुलोचना को अपनी हवेली पर आती हुई देखकर शेठ-शेठानी डर के मारे हक्के-बक्के हो उठे। वे सामने दौडे और आदर सहित अपनी हवेली ले आए। _ 'रानी मां आपने क्युं तस्दी ली, मुझे कहा होता तो मैं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता! आपने क्यों इतना कष्ट उठाया।' विनय करते हुए नगरशेठ ने कहा। नगर शेठ! आपके यहां सुशीला नामकी कोई स्त्री काम करती है क्या? महारानी ने सीधा ही सवाल पूछा। हा रानीमां! पिछले एक माह से मेरे घर की सफाई करती है। बर्तन व कपडे भी धोती है! बाई बहुत भली है। कोई ऊंचे खानदान की लगती है, परंतु नसीब की मारी ऐसा कर रही है, खुलासा करते हुए नगरशेठने कहा। इस प्रकार के वचन सुनकर सुलोचना का हृदय टूकडे-टूकडे हो रहा था। अपनी बड़ी बहन की यह अवदशा? मैं राजरानी की साह्यबी भुगत रही हूँ, और मेरी ही बहन घर-घर के वर्तन माँजे? अरेरे! बिचारी ने ऐसा कौन सा अपराध किया है उसने? सुलोचना की आंखें छलक पड़ी। "अरे! आपकी आंखों में आँसू? आप रो रही है? क्या हमसे कोई भूल हुई हैं? माफ कीजिये रानीमां हमें खबर नही आप रो क्यों रही है?" नगरशेठने अनजानपन के लिहाज में कहा। 'नगर शेठ! मुझे जल्दी उस स्त्री के पास ले चलो' सुलोचना अधीर हो बैठी। 'ऐसी क्या जरूरत है महारानी'। मैं अभी उसे बुला लाता हूँ नगरशेठने कहा। "नही शेठजी! आप ऐसा नही करेंगे"। मेरी बहन को हुक्म नही दे सकते। उनके पास तो मुझे जाना चाहिये। “जल्दी कीजिये, उनके पास पहुँचने के लिए मेरा जी तडप रहा है," सुलोचनाने अधकचरी स्पष्टता करते हुए कहा। 'सुशीला तुम्हारी बड़ी बहन? नही हो सकता' नगरशेठ ने आश्चर्य प्रगट किया। ___हा शेठजी! यह सत्य हैं, सुशीला दीदी कर्म की लीला के शिकार बने हुए हैं। वे मेरी बड़ी बहन हैं। मेरे बहनोई राजा भीमसेन भी इसी नगर में है। उनको आपके महाराजा राजमहल ले जा रह हैं, और मैं भी बड़ी बहन को अपने प्रासाद ले जाने के लिए आई हूँ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust