________________ 160 भीमसेन चरित्र केतुसेन... देवसेन..... केतुसेन.......देवसेन.... भीमसेन अपने बच्चों को लगातार पुकारता रहता था। एक तरफ भीमसेन की पुकार सुनाई दे रही है, तो दूसरी तरफ धरती पर उल्टे मुंह लेट कर रोते हुए केतुसन को देखकर देवसेन बोल उठा। 'केतु! भैया केतु! देख तो सही पिताजी हम दोनों को बुला रहा है।' उठ खडा हो जा। पिताजी, कहा है? तुम तो झुठ बोल रहे हो बड़े भैया! केतुसेन ने रोते-रोते कहा। अरे पगले! तुम स्वयं ही सुन लो! मैं बिलकुल झुठ नही बोल रहा हूँ। केतुसेनने तुरंत खडे होकर कान सीधे कीये, तब ‘केतुसेन... देवसेन! केतुसेन! देवसेन!...भीमसेन का साद नजदीक आ रहा था। केतुसेन व देवसेन दोनों शीघ्र ही बाहर दौड आये। फिर तो जोर-जोर से बोलने लगे। पिताजी... पि...ता...जी... भीमसेन भी कुंवरों की आहट सुनकर प्रतिसाद देने लगा, बेटा केतुसेन!... बेटा देवसेन!... अपने पिता के ही ये शब्द है ऐसा प्रतीत होने पर दोनों भाई दौड पडे। इधर भीमसेन भी पुत्रों की दिशा में दौड रहा था। सामने से दोनों पुत्र भी दौडे आ रहे थे। बाप-बेटे तीनों मिलन के लिए तलप रहे थे। इतने में तो ओ...मां...रे.... कहता हुआ धब्ब से केतुसेन गिर पडा। देवसेन भी वही पर अटक गया। उसी समय Hh4 124.1 हरि सोमारा। पुत्रों की करूणता भरी हालत देखकर आँखों में आंसु धंस आये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust