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________________ *महाऔर भाग्योदय अपना 48 कहा हैं? विजयसेनने अधीरता से पूछा। "महाराज! क्या कहें कहने का मन नही हो रहा हैं, फिर भी हमें सत्य - सत्य कहना चाहिये? भद्राने रानीमा और दोनों कुंवरों को उसकी झोंपडी से निकाल दीये हैं। और कुटिया को आग लगा दी है। अभी वें कहा होंगे? कोई पता नही हैं।" सुभटों के अग्रसर ने नतमस्तक हो कहां। अप्रिय इस बात को सुनकर हक्का-बक्का सा भीमसेन अर्ध चेतनी अवस्था में आकर बोल पडा सु...शी...ला... और उसका गला सुख गया। वह तुरंत मूर्छित हो जमीन पर लुढक गया। भीमसेन जमीन पर गिरे उससे पहले विजयसेनने उसे अपने हाथों थाम लीया, और अपने अंक में सुलाकर पवन ढोने लगा। यह अनिष्ट घटना देखकर उपस्थित सुभट समुह हाक-बाक हो उठा। शीघ्र ही शीतल जल का छिड़काव करने पर भीमसेन की मूर्छा दूर हुई। उसने आंखें खोली और सहसा परिवार याद आने पर आंसू बहाने लगा। ___ 'राजन्! आप स्वस्थ बनिये, हम आप के पुरे परिवार को शीघ्र ही ढुंढ निकालते हैं। मैंने अपने सैनिकों को उनकी शोध में लगाए है। कोई कसर नही रहने पाएगी। थोडी हिम्मत रखियेगा कुछेक पलों में ही पुरे परिवार का मिलन होगा। 'नही विजयसेन! नही' मैं अब जरा सी भी धीरज नही रख सकता। न जाने वें किस हालत में जीते होंगे? कहा होंगे? "मैं अब एक पल भी नही रूक सकता हूँ।" 'मैं स्वयं उनको ढुंढ निकालूंगा'। ऐसा कहकर भीमसेन खडा हो गया। "मैं भी आप के साथ चलूंगा"। विजसेनने कहा। "राजन्! हम दोनों मिलकर उनकी खोज करेंगे।" स्नेहवश हों विजसेनने हमदर्दी से कहा। अनेक सैनिको के साथ दोनों सुशीला व कुंवरों की शोधमें निकल पडे। नगर के अन्दर दुसरे अनेक सुभट शोध कर कहे थे, अतः इन्होंने नगर बाहर ढुंढना शुरू कीया। ... भटकते भटकते सब नगर के किले के आगे आए। भीमसेन और विजयसेनने किले की एक-एक जगह छान डाली, परंतु कही कुछ नजर न आया। जहां नजर पडती थी वहा रेत और पथ्थर के सिवाय और कुछ दृष्टि गोचर नही होता था। फिर भी सबने अपना कार्य चालु रखा। इतने में कही से बालक के रोने की आवाज सुनाई दी। अपने बालकों सी आवाज सुनकर भीमसेन आनंदित हो सहसा पुकारने लगा। विजयसेन! विजयसेन! कुंवर मिल गए। देखिये उस ओर केतुसेन के रोने की आवाज आ रही है। विजयसेनने तुरंत कान सीधे कीये। और जहां से रोने की आवाज आ रही थी उस ओर दत्त ध्यान हो गया। उसको भी बालक के रोने का कोलाहल सुनाई दीया। फिर तो दोनों आवाज की दिशामें चीते की भाँति दौड पडे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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