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________________ 158 भीमसेन चरित्र "इसी नगर में? कहा?" विजयसेन के आश्चर्य का पारावार न रहा। फल स्वरूप भीमसेन ने आरम्भ से अन्त तक सारा वृतान्त कहा। वृतान्त का एक एक शब्द श्रवण कर विजयसेन का रोम रोम खड़ा हो गया। मारे गुस्से से उसकी आँखें लाल हो गई। वह अचानक गर्ज उठा : भद्रा व लक्ष्मीपति की यह हिम्मत और उसने पास खड़े सैनिकों को सम्बोधित कर तीव्र स्वर में कहा। सैनिकों अभी इसी क्षण लक्ष्मीपति सेठ के यहाँ जाओ और उसे और उसकी पत्नी को मुश्के बांध कर बन्दीगृह में बंद कर दो। "सावधान! उसके यहाँ रानी सुशीला और दो राजकुंवर है। उसको ससम्मान राजमहल में पहुँचा दो।" राजाज्ञा मिलते ही सैनिक गण अश्वारूढ हो शीघ्रताशीघ्र लक्ष्मीपति के यहाँ पहुंच गये। सैनिकों के प्रयाण के अनन्तर विजयसेन ने पुनः प्रेम पूर्वक कहा : "राजगृही नरेश भीमसेन! आपके आगमन से हर्ष विभोर हो, अश्व भी हिन हिना कर अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रहे है पधारिए! अश्वारूढ़ होकर और मेरे राजमहल को पावन कीजिए। विजयसेन! तुम्हारी उदारता के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद! किन्तु यह न भूलिए कि, 'जहाँ मेरा समस्त परिवार ही अनंत दुःख और नारकीय यातनाओं की ज्वाला में घिर धू-धू सुलग रहा हो, वहां भला मैं राजमहल के सुख उपभोग कैसे कर सकता हूँ, जब मेरे दुध मुँहे बच्चे भूमि पर शयन करते हो तब मुझे मखमल की शैया पर आराम करना शोभा नहीं देता। जहाँ मेरी पत्नी नंगे पैर लोगों के घर मजदूरी करते-करते थक कर लाश हो जाती हो वहाँ मुझे अश्वारूढ होना अच्छा नहीं लगता। राजन्! आपकी बात यथार्थ है। अब यूँ समजो कि आपका दुःख दारिद्र्य सब नष्ट हो गया हैं। वह समय सब नष्ट हो गया हैं। वह समय बीत चूका है, अब तो सुख का सूरज उग निकला हैं। मेरे सुभट और रानी सुलोचना सुशीला को लेने गये हैं। वे उन्हें लेकर सीधे राजमहल जायेंगे। इसीलिए हम भी वहा जल्दी पहुँच जाए! विजयसेनने भीमसेन की बात का स्वीकार करते हुए कहा। यूँ बातचीत करते करते दोनों राजवी चलने लगे, तब आकाश में वे देववाणी प्रगट हुई। "यहाँ जो सुवर्ण मुहरें पडी है वे तमाम भीमसेन महाराजा की हैं।" "कोई भूल से भी उसे छूए नहीं वर्ना उसका सिरच्छेद किया जायगा।" . तब विजयसेनने तुरंत सभी मुहरे इकट्ठी करवा कर अलग से सुरक्षित जगह रख लीं। फिर दोनों थोडे दूर चले कि वहाँ सामने से आते हुए सुभट मिले। अरे! तुम खाली हाथों वापस क्युं लौटे? महारानी सुशीला कहा हैं? दोनों कुवर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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