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________________ भाग्योदय 157 जमीन-आसमान का परिवर्तन आ गया था। विगत लम्बे समय से भोगे गये अनगिनत दुःखों की स्पष्ट छाया उसके तन बदन पर दृष्टिगोचर हो रही थी। कृश काया और मुायी हुई मुख मुद्रा से उसे पहचानना अत्यंत कठिन एवम् अशक्य था। फिर भी विजयसेन ने अन्ततः उसे पहचान ही लिया। फलतः व्याख्यान समाप्त होते ही उसने भीमसेन को प्रेम पूर्वक सम्बोधित किया : "अरे राजगृही नरेश भीमसेन| और राजा विजयसेन की आवाज कानों में पड़ते ही भीमसेन की भाव समाधी भंग हो गयी। पुनः उसका मन संसार में रमण करने लगा। उसने आँखे खोली तो अपने समक्ष ही राजा विजयसेन को निहारा। क्षणार्ध के लिए दोनों की नजर परस्पर मिली और अनायास ही आँखों से आँसू छलक पड़े। कई वर्षों के उपरान्त स्नेही स्वजन के दर्शन हुये थे। उसका हृदय भर गया उसने भाव विह्नल हो, विजयसेन को गले से लगा लिया। आलिंगन बद्ध कर लिया। भीमसेन का जब क्षितिप्रतिष्ठित नगर में आगमन हुआ था तब उसे भलि भाँति विदित था, कि यहाँ का नरेश विजयसेन है और यह भी ज्ञात था, कि वह उसका साढू भाई है। अगर वह उसके आश्रय में चला जाता तो किसी प्रकार के दुःख उठाने की नौबत नहीं आती। परन्तु उसके स्वाभिमानी आत्मा ने ऐसा करने से उसे रोक दिया था। उस समय उसने पुरुषार्थ पर ही जीवन यापन करने का दृढ़ निश्चय किया था। परिणाम स्वरूप जान-बुझ कर उसने इस नगर में अज्ञातवास किया था। साथ ही बालकों को भी इसी हाल में रखा। इसी तरह पति की मनोदशा को परिलक्षित कर स्वयं सुशीला ने भी यह तथ्य किसी को ज्ञात नहीं होने दिया कि, वह इस नगर के नरेश की साली है। बल्कि एक दीन, निर्धन स्त्री बनकर उसने इस नगर में वास किया। किन्तु अनायास ही यह भेद खुल गया। भीमसेन ने सुपात्र दान दिया। देवों ने दुंदुभी नाद किया और विजयसेन ने भीमसेन को पहचान लिया। दोनों आँखों से मिलन व हर्ष के आँसु बह रहे थे। मौन अल्पावधि तक रहकर विजयसेन ने निस्तब्धता का भंग करते हुए क्षीण स्वर में कहा : "राजन्! आप आज तक कहां थे? मुझे समाचार अवश्य मिला था, कि कनिष्ठ बन्धु हरिषेण से आपकी कुछ कहासुनी हो गई है और आप राजगृही का परित्याग कर कहीं अन्यत्र चले गये है"। ___“किन्तु उसके बाद मुझे कोई समाचार प्राप्त नहीं हुये।" "अरे! आप अकेले कैसे? सुशीला दीदी और कुमार कहां है?" विजयसेन के साश्चर्य पूछा। "विजयसेन! इसी नगर में ही है। भीमसेन ने व्यथित स्वर में कहा।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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