________________ 156 भीमसेन चरित्र चारित्र और तप के अद्भुत तेज से दमकती आचार्यश्री की मुखमुद्रा निहारते हुए वह एक दम भौतिक-संज्ञा शून्य हो गया। प्रदीर्घ अवधि के पश्चात् उसकी आत्मा को ऐसी शांति मिली थी, जिसे वह किसी मूल्य पर खोना नहीं चाहता था। ___आत्मा की उक्त अपूर्व शांति का प्रभाव उसके मुख मण्डल पर स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। उसमें भी देवों द्वारा भेंट किये गये दिव्य वस्त्रों के कारण वह और भी प्रभावित कर रहा था। व्याख्यान में वह अग्रिम पंक्ति में बैठा था। उसके समीप ही विजयसेन एवम् अन्य मंत्री गण आसनस्थ थे। भीमसेन भाव समाधिस्थ हो चुका था, उसे आसपास का ज्ञान नहीं था। केवल देह स्पर्श से ही उसे व्यक्तियों की उपस्थिति का मान हो रहा था। किन्तु वस्तुत अन्तर्मन से उसे उसका कोई स्पर्श नहीं हो रहा था। उसे दिव्य व गंगा के समान निर्मल पवित्र ज्ञान सागर में स्नान करने का जो अद्वितीय अवसर मिला था वह उक्त अप्रतिम आनन्द को अन्य बातों में फंस कर ध्यान बाहर करना नहीं चाहता था। जब कि विजयसेन के सम्बन्ध में ऐसा कुछ नहीं था। वह तो देव दुंदभी का नाद सुनकर वहां उपस्थित हुआ था। वहाँ उसने भीमसेन को एक नजर निहारते ही पहचान लिया। अलबत पहचान ने में उसे अत्यल्प कष्ट तो अवश्य ही हुआ था। क्योंकि जिस भीमसेन के उसने राजग्रही में दर्शन किये थे उसमें और आज के भीमसेन में MALA मीठ देव-दुंदुभि नाद से आकर्षित होकर चले आते भीमसेन के सादं भाई राजा विजयसेन का अपूर्व मिलना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust