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________________ 150 भीमसेन चरित्र है। क्या उसे आप पूर्ण नहीं करेंगे? हे नाथ! इस पल मेरी केवल एक ही कामना है। जीवन की अन्तिम इच्छा है। “विधाता! आप मुझे संसारतारक आचार्य भगवंत के दर्शन करा दो।... और भाव सभर हो, भीमसेन ने पूर्व दिशा में अपने मस्तक को भगवंत के आगे झुकाते हुए विनम्र स्वर में कहा : पूज्य आचार्य भगवंत को मेरा लाख लाख नमस्कार।... और जैसे साक्षात् आचार्य भगवंत ही समुंख हो वैसे उसने सादर पचांग प्रणिपात किया। पल दो पल तक इसी मुद्रा में वह जमीन पर मस्तक टिकाये पड़ा रहा। 'धर्मभाल' सहसा एक शांत व मृदुल स्वर हवा में गूंज उठा। भीमसेन अचानक आश्चर्य चकित हो, यकायक खड़ा हो गया। उसके शंकित मन ने पूछा, यहाँ भला आचार्य भगवंत कैसे? नहीं... नहीं यह मेरा निरा भ्रम है। आचार्य भगवंत हो ही नहीं सकते...? किन्तु स्वर निश्चय ही कान पर पड़ा है। और क्षणार्ध का भी विलम्ब किये बिना वह खड़ा हो गया और चारों तरफ देखने लगा। यह पवित्र स्वर उसने कहां से सुना है। यह बात पक्की करने में उसे अधिक परिश्रम उठाना नहीं पड़ा। उसके सम्मुख ही उसके अन्तर्मन की अभिलाषा मूर्तिमंत रूप धारण कर उसे आशीर्वाद दे रही थी। "धर्मलाभ" शब्द पुनः उसके कान पर पड़े। भीमसेन की आत्मा हर्षित हो उठी। अपने सामने साक्षात् आचार्य भगवंत को पाकर उसका हृदय झूम उठा। उसकी आँखों में उमंग और आनन्द की चमक दृष्टिगोचर होने लगी। उसका रोम-रोम हर्षोल्लाषित हो उठा। फलतः भीमसेन श्रद्धा व भक्तिभाव से विधिपूर्वक श्रमण भगवंत को वंदना की। सुखशाता आदि की पृच्छा पूर्वक चरण स्पर्श किया। आनन्द से छलकती आँखों से वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। यह श्रमण भगवंत और कोई नहीं, बल्कि साक्षात् धर्मबोधसूरि थे। आज उनके सात उपवास का पारणा था। गोचरी ग्रहण करने हेतु वे आकाशमार्ग से किसी नगर की और संचार कर रहे थे। तभी सहसा करुणाई दृष्टि भीमसेन पर पड़ी। वृक्ष नीचे फाँसी के फन्दे को झुलते देखा। करबद्ध भीमसेन को नवकार मंत्र का उच्चारण करते सुना। और उन्होने शीघ्र ही नीचे की ओर गमन किया। आत्महत्या जैसे घोर पाप कर रहे भीमसेन को उबारने के लिए उसके समीप आये। और उन्होने स्निग्ध स्वर में - 'धर्मलाभ' कहा। पूज्य श्रमण भगवंत ज्ञानी थे। अतः पल मात्र में ही उन्होंने भीमसेन को पहचान लिया। "भीमसेन तु यह क्या कर रहा है? इस तरह आत्महत्या कर अपने अनन्त भवों को बिगाड़ने पर क्यों तुला है। राजन्! तुम तो ज्ञानी हो, तुम भली भाँति जानते हो, कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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