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________________ आचार्य श्री का आत्मस्पर्श '151 सुख व दुःख दोनो ही कर्माधीन है। अशुभ कर्मों के उदय से दुःख आता है और शुभ कर्मों के उदय से सुख प्राप्ति होती है। जीवन का इस प्रकार अन्त करने से यदि कर्मो का क्षय होता हो तो भला कोई जीव जीवित रहना क्यों पसंद करेगा? भीमसेन! तुम भव्य आत्मा हो। पूर्व पुण्य के फल स्वरूप तुझे जैन शासन मिला है। वीतराग प्रभु के धर्म की प्राप्ति हुई है। ऐसा उत्तम धर्म प्राप्त होने के उपरांत भी तुम ऐसा करने जा रहे हो? __आत्मा को जागृत करो राजन्। आये हुये दुःखों को स्वीकार करो। आर्तध्यान व रोद्रध्यान को दूर करो। इस तरह के ध्यान से तो दुःख घटने के बजाय और अधिक बढ़ेंगे। कर्मों का आवरण मोटा होता जायेगा और आत्मा इस आवरण के तले कहीं गहरी दबा जायेगी। अतः भूल कर भी ऐसा कार्य मत करना। शुभ ध्यान में लीन हो जा| कर्मों को भोगते हुए अशुभ कर्मों की निर्जरा करो। जरा तो सोच। आज जो दुःख और यातनाएँ तुझे मिल रही है ये तुझे नहीं बल्कि तुम्हारी देह को मिल रही है। और यह न भूल, तू देह नहीं आत्मा है, दुःख की अनुभूति दुःख देह को होती है। ना कि आत्मा को! सावधान राजन्! सावधान। मन की निर्बलता को त्याग दो। और मानव जन्म को सुकृत कार्यों में लगाकर सार्थक करो। आत्म वीर्य को विकस्वर कर शुभ कर्मों के हरिमोगरा भीमसेन! तुम पुण्यात्मा हो और इसी भव में केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में जाओगे! ऐसी भविष्यवाणी सुनाते हुए आचार्य भगवंत। IMILIA P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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