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________________ आचार्य श्री का आत्मस्पर्श 149 “नमो अरिहंताणं... नमो सिद्धाणं... नमो आयरियाणं... नमो उवज्झायाणं... नमो लोए सव्वसाहूणं..।" एक-एक पद का वह शक्ति पूर्वक स्मरण करता गया और कल्पना में खोया हुआ बन्द आँखों से वह क्रमशः अरिहंत परमात्मा, सिद्ध भगवन्त आदि को निहार कर श्रद्धा से क्षमा याचना करने लगा। नमो आयरियाणं... पूज्य आचार्य भगवान को नमस्कार हो ऐसा कहकर उसने श्रद्धाभाव से मस्तक झुका लिया। अनायास ही उसकी जागृत आत्मा को उत्कृष्ट भावों की अनुभूति हुई। इस समय यदि मुझे उनका दर्शन लाभ हो जाय तो मेरा जीवन ही सफल हो जाये। परन्तु मेरा भला ऐसा सौभाग्य कहाँ? मैं तो यहाँ निर्जन वन में खड़ा हूँ। और ऐसे परम योगी की उपस्थिति की संभावना ही कैसे सम्भव है? तो क्या मेरा जीवन उनके दर्शन के बिना ही व्यर्थ चला जायेगा। हे विधाता! आज तक मैंने तुझसे प्रायः सुख व सम्पति की याचना की है। तो प्रत्युत्तर में आपने मुझे अनंत दुःख व वेदना ही दी है। तथापि उसका वरण भी मैंने हंसते-हंसते ही किया है। और इसी तरह आज भी उसी भावना से मैं मृत्यु को स्वीकार कर रहा हूँ। हे देवधिदेव! मृत्यु का आलिंगन करने वाले व्यक्ति की एक अन्तिम अभिलाषा 443 HMAK हरिसोमा फांसी के फंदे पर चड़ने के पहले मन में आचार्य को स्मरण करते ही सहसा "धर्मलाभ" ध्वनि सुनाई पड़ी, आश्चर्य चकित होकर आचार्य के दर्शन करता हुआ भीमसेन। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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