SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 148 भीमसेन चरित्र तीसरा प्रयास था। प्रथम प्रयास में सेठने जीवन दान देकर बहुमूल्य रत्नों व राशि की भेंट दी। परन्तु वह उसके कुछ काम न आई। दूसरे प्रयास में साधु ने बचाया। सुवर्ण रस का लालच देकर अपना कार्य सिद्ध किया। रस की प्राप्ति अवश्य हुई, परंतु साधु ने उसे ठग लिया। रक्षक ही भक्षक बन गया। और भीमसेन को स्वर्ण रस मिल कर भी नहीं मिला। अब और अधिक धैर्य धारण करना भीमसेन के वश में नहीं रहा। उसने एक बार पुनः वृक्ष की उन्हीं जटाओं को गले के चारों ओर लपेटा और जीवन को अन्तिम विदाई देने के लिये प्रस्तुत हो गया। आचार्य श्री का आत्मस्पर्श भीमसेन जीवन से बुरी तरह थक गया था और ऐसा होना स्वाभाविक भी था। दुर्भाग्य उसके पीछे हाथ धो कर पड़ा था। राजगृह परित्याग के अनन्तर उस पर लगातार दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा था। एक के बाद एक मिली असफलताओं ने उसके मनोबल को क्षीण कर दिया। दो बार वह आत्महत्या का प्रयास कर चुका था। परन्तु दोनों ही बार बच गया था कहिए अथवा बचा लिया गया। अतः इस बार तो उसने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि यदि सृष्टि देवता स्वयं भी बचाने आ जाय तो भी उन्हे मना कर दूंगा और मृत्यु का वरण अवश्य करूंगा। भीमसेन जीवित रहने की उमंग आशा तो पहले ही खो बैठा था। तथापि सद्बुद्धि ने अभी उसका साथ नहीं छोड़ा था। नारकीय यातनाओं के भार तले भी जो बुद्धि में विवेक बचा रहा था उसके परिणाम स्वरूप उसने अपना अन्त समय सुधारने का मन ही मन निश्चय किया। ____ आत्म चिंतन के दौरान बुद्धि ने कहा अरे भीमसेन! तुम्हारा तो पूरा जीवन ही धूल में मिल गया है। ऐसी स्थिति में जब तुमने अपने जीवन का अन्त ही करनेका संकल्प कर लिया है तो अपनी अन्तिम क्षणों को तो सुधार लो। भला किस लिए आर्तध्यान व रौद्र ध्यान में रत रहकर तुम अपने आने वाले भवों को यों बिगाड़ रहे हो? मृत्यु का वरण करना ही है तो हँसते हँसते किसी प्रकार के रंज एवं रोष किये बिना अन्तर्मन की उमंग से उसका स्वागत करो। शुभ ध्यान कर, प्रभु का स्मरण कर और अपने अन्त को अनंत प्रकाशमय बना लो। बुद्धि द्वारा उत्राहने से भीमसेन की आत्मा जग पडी। उसने एक बार पुनः वृक्ष की जटाओं का फन्दा बनाया। तत्पश्चात् उसकी गाँठ का भलि भांति निरीक्षण किया। पूर्व दिशा की और मुंह कर वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। आँखों को मूंद लिया। बन्द आँखों से वह वीतराग प्रभु के दर्शन करने का प्रयल करने लगा। ठिक वैसे ही मुँह से महामंत्र का भावपूर्वक स्मरण करने लगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy