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________________ 144 भीमसेन चरित्र चढाई कर दोनों ने एक गुफा में प्रवेश किया। गुफा में घोर अन्धकार था। हाथ को हाथ नहीं दिखाई दे रहा था। साधु ने चकमक पत्थर से एक डाली जलाई और उसके प्रकाश में धीरे-धीरे आगे बढने लगे। चारों ओर से वन्य पशु व पक्षियों का चित्कार सुनाई दे रहा था। कन्दराओं में विश्राम करते सिंह की गगन भेदी गर्जन रह-रहकर कान पर टकरा रही थी। भीरू व कायर व्यक्ति का हृदय प्रकम्पित हो जाय, ऐसी भयानक गुफा थी। परन्तु दोनों वीर और साहसी थे। अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु साहसिक बने थे। भय और निर्बलता से काम की सफलता सम्भव नहीं थी। जंगली सांप, नाग, चमगादड़ वगेरे से बचते हुए दोनों ही सावधानी पूर्वक एक कुण्ड के समीप पहुँचे। कुण्ड में चिल चिलाता रस उबल रहा था। आसपास के गरम वातावरण से ही उसकी ज्वलनशीलता का अनुमान हो रहा था। साधु ने दूर से ही किसी मंत्र का जाप किया। भीमसेन को आँखें बन्द करने का आदेश दिया। जाप पूरा करके साधु ने 'ॐ स्वाहा! ॐ स्वाहा!" का जाप किया। भीमसेन ने भी आदेशानुसार उक्त मंत्र का उच्चारण किया। - वातावरण में शीतलता छा गई। साधु ने अपने पास रहे दोनो रिक्त तूम्बे कुण्ड में डाले। गड़ गड़ की आवाज हुई। उसके साथ ही भीमसेन ने उसमें तेल की धार लगा दी। साधु ने उच्च स्वर में मंत्रोच्चारण किया और ततपश्चात् चारों तूम्बे भर कर दोनों गुफा से बाहर आ गये। ST NE O हारक्सामा भीमसेन की सहायता से सुवर्णरस की सिद्धि करने में लगा जटाधारी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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