________________ वधाता ऐसा ! कब तक? 145 “वीर भीमसेन! इन तूम्बों में सुवर्ण रस है। इसकी एक भी बूंद लोहे पर गिरते ही लोहा स्वर्ण में परिवर्तित हो जायगा। वर्षों के परिश्रम तथा उग्र तपश्चर्या के अनन्तर मैंने यह सिद्धि प्राप्त की है। मैं तुम्हें उक्त सिद्धि नहीं, बल्कि इनमें से एक तूम्बा दे रहा हूँ, जिसका तुम जैसा चाहो वैसा सदुपयोग करना। पलक झपकते न झपकते तुम्हारी निर्धनता दूर हो जायगी और तुम विश्व के धनाढ्य व्यक्ति बन जाओगे।" साधुने करूणाभाव से कहा। "महात्मन्। वास्तव में आपकी करूणा अपरम्पार है। आपने मुझ पर अनेक उपकार किये है। इस रस की एक एक बूंद का मैं सदुपयोग करूगा।" भीमसेन ने कृतज्ञ भाव से कहा। "तो चलो! शीघ्र ही हमें क्षितिप्रतिष्ठित पहुँच जाना चाहिए।" साधु व भीमसेन शीघ्रता से क्षितिप्रतिष्ठित नगर आ पहुँचे। लगातार थकान भरी यात्रा से दोनों थक कर चूर हो गये थे। परन्तु स्वर्ण रस की प्राप्ति से दोनों ही प्रसन्न व आनंदित हो नगर के बाहर स्थित एक यक्ष मंदिर के चौक में बेठ गये। चौक में वृक्ष की शीतल छाया थी। कुछ समय सुस्ताने बाद साधु ने कहा : "भीमसेन मारे भूख के मेरा पेट बुरी तरह बिलबिला रहा है। वैसे तुम्हें भी भूख तो लगी होगी। अतः नगर में जाकर कुछ भोजन सामग्री लेकर आओ। तब तक मैं यहाँ बैठकर थकान उतारता हूँ।" ___ "जैसी आपकी आज्ञा महात्मन्!" भीमसेन ने कहा और साधु से कुछ स्वर्ण मुद्राएँ लेकर उसने मगर की ओर प्रयाण किया। भीमसेन के जाते ही साधु ने अपना रंग दिखाया। उसके मन में खोट आ गई। हृदय में पाप का उदय हो गया। राह चलते-चलते ही उसने विचार कर लिया था : 'मैं इस भिखारी भीमसेन को भला क्यों स्वर्ण रस दूँ? मेरी उग्र तपश्चर्या और परिश्रम के फल स्वरूप यह सिद्धि प्राप्त हुई है। ऐसी स्थिति में इस रंक को इसका फल देने से क्या लाभ? ऐसे निर्धन तो इस जगत में कई मारे मारे फिरते हैं। सब अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। मेरे ही पुण्यबल से मुझे इस रस की प्राप्ति हुई है। तो मैं भला अपने पुण्य में भीमसेन को भागीदार क्यों बनाऊँ?" ___ "नहीं! मुझे किसी भी युक्ति से इसे अपने रास्ते से हटा देना चाहिए।" और आनन फानन में साधु ने एक योजना बनाई। तद्नुसार उसने भीमसेन को नगर में प्रेषित किया। और स्वयं वहाँ से पलायन कर गया। भीमसेन नगर में पहुँच स्वादिष्ट पकवान और फलादि खरीद कर तीव्र गति से यक्ष मंदिर लौटा। भोजन सामग्री एक ओर रखकर साधु की तलाश में वह मंदिर में गया, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust