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________________ 142 भीमसेन चरित्र बढ़ाने का यल करने लगा। मृत्यु की सहायता करने हेतु उसने अपने श्वास को रोक लिया और उसकी प्रतिक्षा करने लगा। परन्तु लाख प्रयल के उपरान्त भी मृत्यु उसकी मित्र न बनी। जितनी तीव्रता से वह मृत्यु का इन्तजार कर रहा था। मृत्यु उतनी ही उससे दूर-सुदूर भागे जा रही थी। कुछ क्षणों तक वह इसी प्रकार अधर में झूलता रहा। मृत्यु की असह्य वेदना अनुभव करता रहा। तभी धम्म से भूमि पर गिर पड़ा। बन्धन टूट गये। गिरते हुए अनायास ही उसके मुख से शब्द निकल पड़े ...अ...रि...ह...त...। मृत्यु(काल) का यह बन्धन अचानक टूटा नहीं था। जिस क्षण भीमसेन मृत्यु व जीवन के बीच हिचकोले खा रहा था, उसी क्षण संयोगवश वहाँ से एक जटाधारी साधु महात्मा गुजर रहे थे। भीमसेन को मृत्यु के लिये उतावला देख, वे तीर की भाँति उसकी ओर आये और तेजधार वाले त्रिशूल से जटाओं पर वार किया। पाश टूट गये। भीमसेन मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था। परंतु एक बार पुनः उसे जीवनदान मिला। ऐसा जीवन जिसके दुःखों व यातनाओं से दुःखी होकर उसे समाप्त करने का दृढ निश्चय कर चुका था। साधु महात्माने भीमसेन को भूमि पर लिटाया। कमण्डल जल से उसके मुँह पर छीटे मारे। हाथ पैरों को सहलाया। भीगे कपड़े से उसके मुख को पोंछा। सीने को धीरे Sindia हर सोमना हिम्मत हारे भीमसेन को जटाधारी द्वारा त्रिशूल से डोरी काटकर मरते हुएं माना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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