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________________ वधाता ऐसा ! कब तक? 139 बंदर कंथा उठा कर भाग गया। मात्र पल दो पल का ही खेल बन्दर ने खेला, भीमसेन के प्राणों पर बन आयी। सरोवर से बाहर निकलते ही भीमसेन की दृष्टि कंथा पर गयी। पर कंथा वहाँ होती तो दिखती न? आँखें फाड़ फाड़कर बार बार देखा। परन्तु सीढियों एक दम साफ नजर आई। धूप सीढियों पर बिछी थी, परन्तु कंथा कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुई। सहसा भीमसेन की आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। उसका दम घुटने लगा। वह सीढियाँ चढ कर शीघ्रता से ऊपर आया और चारों तरफ देखने लगा। पर कहीं कुछ नज़र नहीं आया। जमीन पर भी कहीं किसी पद चिह्न के निशान नहीं थे। तो कंथा कौन उठा ले गया? भीमसेन कुछ भी निश्चय नहीं कर सका। वह हताश होकर बैठ गया। उसकी तो किनारे पर लगी नाव ही डूब गयी। वह मारे व्यथा के मुँह लटका कर सरोवर तट पर बैठ गया। तभी पेड़ पर बैठे बन्दर की हूप-हूप सुनायी दी। भीमसेन की दृष्टि उस दिशा में गई। और उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने देखा कि एक बन्दर उसकी कंथा को बड़े मजे से इधर उधर झूला रहा है। उसको दाँतों से फाड़ने की कोशिश कर रहा है। नाखूनों से उसे नोंच रहा है और आनन्द पूर्वक उसके साथ खेलने में मग्न था। भीमसेन शीघ्रता से उस दिशा में दौड़ा। पेड़ के नीचे खड़े होकर वह चिल्लाया। PATELL KARAN UNIL XIA ATTIMIT FASNA हरिशएश धन लेकर प्रसन्नता पूर्वक सरोवर में स्नान करने के वास्ते पानी में नहाता हुआ भीमसेन और दुर्भाग्य वश उसी वक्त बंदर धन लेकर नौ दो ग्यारह हो गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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