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________________ 138 भीमसेन चरित्र था। अधिकतर वे तीनों आधे भूखे रहकर ही दिन व्यतीत करते थे। उसमें भी सुशीला तो नाम मात्र का भोजन कर अपना निर्वाह चला रही थी। सुशीला का जीवन दुःख और नारकीय यातनाओं की अग्नि में बुरी तरह झुलस रहा था। जबकि इधर भीमसेन प्रसन्न चित होकर रोहणाचल पर्वत से क्षिति-प्रतिष्ठित नगर की ओर आ रहा था। राजगृही परित्याग के अनन्तर प्रथम बार ही भीमसेन के हाथ इतनी बड़ी राशि लगी थी। उसे उसके परिश्रम का योग्य पारिश्रमिक प्राप्त हुआ था। सेठ ने लक्षाधिक मूल्य के रत्न उसे प्रदान किये थे। अब तो उसके भाग्य में बस सुख, सुख और सुख ही था। बहुमूल्य रत्न प्राप्त कर भीमसेन अपनी सारी चिन्ताओं का विस्मरण कर गया। सभी निराशाओं का अन्त आ गया। राह में बिना कहीं रूके वह तीव्र गति से लौट रहा था। विगत प्रदीर्घ अवधि से उसने अपने पुत्र व पलि को देखा नहीं था। उनके मधुर मिलन व उन्हे शुभ समाचार से अवगत करने के लिये उसका मन अधीर बन उठा था। फलतः इसी अधीरता के कारण वह शीघ्र ही क्षितिप्रतिष्ठित नगर आ पहुँचा। अभी आबादी बहुत दूर थी तथा निकट ही सुन्दर सरोवर था। निर्मल जल में सुन्दर कमल खिले हुए थे। लम्बी यात्रा के कारण भीमसेन के वस्त्र अत्यधिक मलिन और मैले कुचैले हो गये थे। शरीर भी अस्वच्छ था। ऐसी स्थिति में भला वह अपने पुत्र व पलि से कैसे मिलेगा? उसके बारे में वे क्या सोचेंगे? ऐसा सोचकर कुछ क्षण वह शान्त खड़ा रहा और तब मन ही मन निश्चय किया कि वह स्नानादि कार्य से निपट कर तथा सुन्दर वस्त्र धारण कर ही पली व पुत्रों से मिलेगा। तद्नुसार उसने शीघ्र ही स्नान की तैयारी की। सरोवर की सीढियों पर उसने अपनी कंथा सावधानी पूर्वक रखी उसमें उसने बड़ी होशियारी से बहुमूल्य रत्नों को बाँधा था। कंथा के ऊपर उसने अपने जीर्ण शीर्ण वस्त्र उदार कर रखे और तब चारों तरफ एक नज़र डाली। वहाँ कोई नहीं था। तत्पश्चात् उसने अरिहन्त का स्मरण करते हुए शीघ्रता से पानी में डुबकी लगाई। सरोवर के शीतल जल के स्पर्श मात्र से ही उसकी थकान उतरने लगी। वह उल्लासित होकर स्नान करने लगा। तभी कहीं से एक बन्दर दौड़ता हुआ वहाँ आया और आनन फानन में कंथा उठाकर वेग से पेड़ पर चढ़ गया। यह सब कुछ ही क्षणों में हो गया, इधर भीमसेन ने जल में डुबकी मारी और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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