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________________ वधाता ऐसा ! कब तक? 137 है और क्यों वह क्रोधित होकर इस तरह गर्ज गर्ज कर बरस रही है? वह तो भद्रा की जली कटी सुनकर मौन निस्तब्ध खड़ी रही। इधर देवसेन व केतुसेन भी भद्रा के डर के मारे काँपते हुए सुशीला से सटकर खड़े रहे। यह देख भद्रा और भी जोर से चीख पड़ी : “यो पत्थर की भाँति निश्चेष्ठ क्यों खड़ी है? मैं जो कह रही हूँ वह सुना नहीं? क्या बहरी हो गई है? चल निकल, झौंपड़ी से... खबरदार! अब जो दुबारा इस तरफ लौट कर आई तो... जीवित ही जला दूंगी।" इतना कहकर एक एक बर्तन झौंपड़ी से बाहर फैकने लगी और धक्का मार कर सुशीला को झौंपड़ी से बाहर निकाल दिया। बालकों को भी बाहर निकाल दिया। परन्तु भद्रा को इतना करने पर भी सन्तोष नहीं हुआ। फलतः उसने चुल्हे में से जलती हुई लकड़ी लेकर झोंपड़ी में आग लगा दी। झोंपड़ी धूं धूं - जलने लगी और देखते ही देखते जल कर भस्म हो गयी। सुशीला पुनः बेघर हो गई। बालक पुनः सर्दी में काँपने लगे। परिणामतः सुशीला का हृदय आक्रान्त हो उठा। वह बार बार अपने कर्मों को कोसने लगी ... उसकी समीक्षा करने लगी। यह सब पूर्व भव के कर्मों का ही फल है, सोचकर किसी तरह अपने हृदय को समझाने लगी... समभाव से चुपचाप सब सहन करती रही। इधर भद्र ने झोंपड़ी को जलाकर राख कर दिया। थोड़ी बहुत जो घर की साधन सामग्री थी वह तहस नहस कर दी और जैसे कुछ हुआ ही नहीं वैसे अकड़ती हुई चली गयी। झोंपड़ी आबादी से बहुत दूर थी। अतः उसका संरक्षक भी कोई नहीं था। झोंपड़ी का नामोनिशान मिट गया और इधर भद्रा भी चली गई। सुशीला अपने बालकों को साथ लेकर नवकार मन्त्रका स्मरण करते हुए बहुत देर तक सुन्न खड़ी रही। किन्तु इस तरह निष्क्रिय होकर खड़े रहने से भला कैसे काम चलेगा? सोचकर अल्पावधि में ही सुशीला ने अपने को आश्वस्त किया और नये सिरे से काम की तलास में निकल पड़ी। देर तक इधर - उधर चक्कर काटने के उपरान्त किले के एक जीर्ण भाग में थोड़ा खाली स्थान दिखाई दिया। उसने वहाँ ही टिक जाने का निश्चय किया और देवसेन व केतुसेन को वहीं बिठाकर काम की तलाश में निकल पड़ी। ___दो तीन दिन तक उसने अनेक घरों की खाक छानी। लोगों से काम देने के लिये प्रार्थना की। परन्तु उसकी प्रार्थना पर किसीने ध्यान नहीं दिया। सभी ने उसका तिरस्कार किया। इस अवधि में माँ-बेटे भूखे ही रहे। किन्तु तीसरे दिन एक कुम्हार के यहाँ उसे छोटा-मोटा काम मिला| कुम्हार ने उसे मटके बेचने बाजार में भेजा। यह समय की बलिहारी थी, कि एक समय की राजरानी आज बीच बाजार मिट्टी के बर्तन बेचने लगी। ठीक-ठीक समय व्यतीत होने के पश्चात उसे अन्य काम भी मिलने लगा। इतना सारा कार्य करने के उपरान्त भी बड़ी कठिनाई से उन तीनों का पेट भरता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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