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________________ 136 भीमसेन चरित्र समझ से सब दुःखों का सामना करते रहते थे। साथ ही शीघ्र ही अच्छे दिन आयेंगे इसी आशा में जिंदगी के दिन व्यतीत कर रहे थे। परंतु उनके भाग्य में अभी सुख कहाँ था? एकबार भद्रा सेठानी सुशीला की झोपड़ी के पास से गुजर रही थी। बाहर देवसेन व केतुसेन खेल रहे थे और भीतर सुशीला भोजन बना रही थी। भद्रा सेठानी की नज़र सहसा उन बालकों पर पड़ी और उसका खून खौल उठा। उसका गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया। ईर्षालु स्वभाव जाग उठा। वह शीघ्र ही झोंपड़ी में दाखिल हुई। उसने सुशीला को कान पकड़ कर खड़ी की और अपनी गन्दी जुबान से धारा प्रवाह बोलने लगी। जो जी में आया सो अनाप-सनाप बकने लगी : 'अरे कुलटा! अभी तक तू यहाँ है? तुझे कुछ शर्म लाज है या नहीं? मेरे घर से तुझे निकाला तो तू यहाँ आकर अड्डा जमा बैठी। तेरी आदत अभी सुधरी नहीं और ना ही तू अपनी हरकतों से बाज आएगी। परन्तु तुझे शायद यह ज्ञात नहीं कि मैं कौन हूँ? तेरी सारी हेकड़ी भूला दूंगी और तेरे मन में जो है उसे मिट्टी में , मिला दूंगी समझी? और यह तेरे बाप की झौंपड़ी है? जो यहाँ आकर टिक गयी है, निकल जा, यहाँ से। तेरे रहने मात्र से ही मेरी यह झोंपड़ी अपवित्र हो गई। भद्रा को यों आकर अचानक उसे खरी खोटी सुनाते देखकर वह सहसा विचार शून्य हो गयी। उसके समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि इसमें भला उसका क्या दोष सुशीला एवं दोनों बचों को घर से बाहर निकाल कर चूल्हे से जलती हुई लकड़ी लेकर आग लगाती हुई शेठाणी, बेघर बनी सुशीला। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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