________________ मौत भी न मिली 131 ऐसा विचार कर वह अपने हाथ का सिरहाना बना, जमीन पर ही लेट गया और नमस्कार महामंत्र का सतत स्सरण करते करते उसकी आँखें कब लग गई पता ही न चला। प्रातः होते ही सेठ के डेरे के तम्बू उठने लगे। बैलगाड़ी में जोते गये, गधों पर सामान लादा गया, अगली यात्रा के लिये घोड़ो पर जीन कर दी गयी। सवार तैयार हो गये। रास्ते की जानकारी देनेवाले पथ प्रदर्शक भी तैयार हो गये। भीमसेन भी उनके कार्यों में हाथ बटाने लगा। साथ रहा सामान उठा उठाकर गाड़ी में रखने लगा। तत्पश्चात् उसने घोड़ो पर जीन कर दी और स्वयं भी तैयार हो गया और काफिला रोहणाचल पर्वत की ओर चल पड़ा। प्रातः काल में यात्रा, दुपहर में किसी शीतल छाया में विश्राम, धूप ढलते ही पुनः आगे की यात्रा और दिन ढलते ही किसी ग्राम के सिवार में डेरा-तम्बू डालकर विश्राम। इस प्रकार यात्रा निरन्तर जारी थी। काफिला मंजिल पर मंजिल काटता बढ़ता गया। भीमसेन कभी पैदलचलता तो कभी घोड़े की सवारी करता, तो कभी बैलगाड़ी में यात्रा करता। उसे अपने साथियों के साथ इस यात्रा में विलक्षण आनन्द की अनुभूति हो रही थी। शनैः शनैः वह अपना दुःख भूलता जा रहा था। रह रहकर जीवन में उल्लास का अनुभव कर रहा था। कभी कभार कुछ क्षणों के लिये उसे अपने परिवार की दयनीय अवस्था की स्मृति हो उठती। तब वह बलपूर्वक उस स्मृति को पीछे धकेलता और उज्ज्वल भविष्य की आशा में निरन्तर पथ पर बढ़ता जा रहा था। भीमसेन की विनय शीलता से सेठ अत्यन्त प्रसन्न थे। फलतः उसके साथ उनका व्यवहार सौहार्द्र पूर्ण था। संभव होता वहाँ तक सेठ भीमसेन को कार्य करने नहीं देते। परंतु भीमसेन था, कि हठ करके हर काम प्रेम पूर्वक करता रहता था। भीमसेन ने सेठ के हृदय में अपने लिये स्थान बना लिया था। उन्हें सभी दृष्टि से भीमसेन परिश्रमी व प्रामाणिक लगा। वह हृदय का साफ व स्वच्छ था। इसी कारण सेठ स्वयं भी उसकी विशेष चिन्ता करता था। भीमसेन ने भोजन किया या नहीं, दुपहर का विश्राम किया या नहीं, चलते चलते कहीं थक तो नहीं गया। रात्रि में सुख पूर्वक सोया था या नहीं, ठंडी के मारे हैरान तो नहीं हुआ... ऐसी अनेक बातों का सेठ विशेष रूप से ध्यान रखते थे। अल्पावधि में ही सेठ व भीमसेन के मध्य प्रगाढ स्नेह सम्बन्ध प्रस्थापित हो गया। एक सुहानी प्रातः वेला में पर्वत दिखाई देने लगा। मंजिल मिल गई। अब यात्रा समाप्त हो गई। कार्यक्षेत्र सामने था। साधना के दिन आरम्भ होने ही वाले थे। कार्य का आरम्भ करने भर की देर थी। उन्होने रोहणाचल पर्वत की तलहटी में पड़ाव डाला। उस दिन सभी ने विश्राम किया और अपनी थकान उतारी। दूसरे दिन भीमसेन सहित सभी कार्य पर लग गये। कुदाली, फावड़ा और तगारी लेकर काम पर जुट गये। भू-मापक और मिट्टी परखने का यन्त्र भी उन्होने अपने साथ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust