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________________ 130 भीमसेन चरित्र काम करना। हमारे साथ तुम भी रहना। हमारा काम सफल होते ही मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा... तुम्हारे परिश्रम का उचित पारिश्रमिक दूंगा। तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। प्रभु का स्मरण कर इसी समय हमारे साथ चलो।" सेठ ने उसे साथ ले जाने का आश्वासन दिया। भीमसेन रात्रि में सेठ के तम्बू में ही सो गया। सुंदर व आरामदायक खटिया पर मुलायम गद्दे बिछे हुए थे। सिरहाने दो सुन्दर तकिये और औढ़ने के लिये रजाई थी। तिस पर तम्बू के छिद्रों में से चन्द्रमाँ की किरणें अमृत वर्षा कर रही थीं। विगत कई दिनों के बाद भीमसेन को सोने के लिये ऐसा आरामदायक स्थान मिला था। शैया पर लेटते ही उसे जरा राहत मिली। शरीर की दुःखती हड्डियों को नरम-गरम गद्दों पर आराम मिला। चन्द्रमाँ को निरखते निरखते उसके मन में सहसा एक विचार कौंध गया। उसे बरबस सुशीला व बालकों की याद सताने लगी। 'क्या वे भी इसी तरह आराम से सोते होंगे? नहीं! नहीं! ऐसा सुख भला उन्हें कहाँ? मैंने उन्हे अपनी आँखों से सोते देखा है। बिचारे! कैसी निर्धनता व कंगाली की अवस्था में अपने दिन गुजार रहे हैं। शरीर के आधे अंग खुले थे। न जाने इस ठंड में वे कैसे ठिठुर रहे थे। वे भला असह्य दुःख में दिन काट रहे है और मैं यों यहाँ सुख पूर्वक सौॐ? ना... ना..., मैं भी भूमि पर ही शयन करूंगा। WMOTIVI Tituteyal रिसोमपुर अरुणोदय होते ही, बैलगाडी, घोड़े, गधों पर सामान चढ़ाकर सब रवाना हुएँ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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