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________________ 114 . .. भीमसेन चरित्र ___ "तो फिर तुम महाराज अरिंजय से क्यों नहीं मिले? वे तो मुझसे पूर्व ही आ गये थे। तुमको उनसे मिलना चाहिए था न?" "हे दयालु! मैं भला क्या कहूँ? मुझे यह कहते हुए लज्जा का अनुभव हो रहा है, कि इससे पूर्व मैं उनसे भी मिला था। मैंने अपनी स्थिति से उन्हें अवगत किया था।" __"तो क्या उन्होंने सहायता करने से इन्कार कर दिया" जीतशत्रु ने आश्चर्य चकित होकर पूछा। "नहीं स्वामी! उन्होंने मेरी कोई सहायता नहीं की।" भीमसेन की वाणी से दीनता का भाव स्पष्ट झलक रहा था। "क्यों? ऐसा क्यों हुआ? कोई कारण तो होगा?" "प्रभो! यह तो मुझे ज्ञात नहीं। उन्होंने मुझ से सिर्फ इतना ही कहा, कि उन्हें व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है।" राजा जीतशत्रु यह सब सुनकर विचार मग्न हो गया। महाराज अरिंजय ने भला सहायता करने से क्यों मना किया? वे तो दयालु है। दुःखी इन्सान को देखकर ही उनका हृदय व्यथित हो उठता है। फिर क्या कारण था, कि उन्होने इस पर दया नहीं की? इससे पूर्व ऐसी घटना कभी नहीं घटी थी। तो इस बार भला ऐसा क्यों हुआ? शायद अरिंजय को ऐसा तो आभास नहीं हुआ, कि यह व्यक्ति सत्य नहीं कह रहा है? सम्भव है उनके मन में यह शंका उत्पन्न हो गयी हो, कि यह व्यक्ति उनके साथ छल कर रहा हो? तभी भीमसेन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा : “राजन्! आप दयालु है... उदार है। आप मुझे निराश न करें। आप चाहे जैसा काम दें, मैं करने के लिये तैयार हूँ। परंतु मेरे प्रति न्याय करें... मेरा उद्धार करें। मैं आपका शरणागत हूँ।" "नहीं भीमसेन! अब मैं तुम्हारी किसी प्रकार की सहायता करने में असमर्थ हूँ। मुझे तुम्हारे जैसे व्यक्ति की कतई आवश्यकता नहीं है।" जीतशत्रु ने काफी सोच-समझकर उत्तर दिया। महाराज अरिंजय ने बिना विचारे ऐसा निर्णय नहीं लिया होगा। अवश्य ही उन्हें इसमें अपात्रता एवम् अयोग्यता के दर्शन हुए होंगे। इसी कारण उन्होंने इसकी कोई सहायता नहीं की। उन्होंने जब ऐसा निर्णय लिया है तो भला मैं कैसे सहयोग दे सकता हूँ? वास्तव में उन्होंने जो निर्णय किया है, वह कुछ सोच समझकर ही किया होगा। अतः मुझे भी इसकी मदद नहीं करनी चाहिए और उसने भीमसेन को स्पष्ट मना कर दिया। “राजन्! यह आपने क्या कहा? आप मुझे कार्य नहीं दे सकेंगे? अरे रे! अब मेरा क्या होगा?" परंतु भीमसेन का विलाप सुनने की जीतशत्रु को भला फुर्सत कहाँ थी? वह तो इन्कार कर शीघ्र ही वहाँ से प्रयाण कर गये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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